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२०९. नेटालवासी भारतीयोंके कष्टोंका विवरण[१]

[लन्दन]
अगस्त १०, १९०९

नेटालवासी ब्रिटिश भारतीयोंके कष्टोंका संक्षिप्त विवरण
नेटालवासी भारतीयोंके शिष्टमण्डल द्वारा प्रस्तुत

इस शिष्टमण्डलमें ये लोग शामिल हैं: अब्दुल कादिर, नेटाल भारतीय कांग्रेसके कार्यवाहक अध्यक्ष; पीटरमैरित्सबर्गके आमोद भायात, जो पिछले २५ सालसे व्यापार करते आ रहे हैं। हुसेन मुहम्मद बदात, पीटरमैरित्सबर्ग और रिचमंडके व्यापारी, जो पिछले २२ सालसे व्यापार करते आ रहे हैं; और डर्बनके मुहम्मद कासिम आंगलिया, व्यापारी और नेटाल भारतीय कांग्रेसके संयुक्त अवैतनिक मन्त्री।

ये प्रतिनिधि पिछली ७ जुलाईको डर्बनमें आयोजित एक सभा में चुने गये थे। सभाकी अध्यक्षता नेटाल भारतीय कांग्रेसके कार्यवाहक अध्यक्ष श्री अब्दुल्ला हाजी आदमने की, और चुनाव सर्व सम्मतिसे हुआ। प्रतिनिधियोंको अपने उद्दिष्ट कार्यके समर्थनमें अनेक तार प्राप्त हुए हैं।

उपनिवेश-कार्यालयको एक प्रार्थनापत्र[२] भेजा गया है जिसकी एक नकल अब प्रतिनिधियोंको भी मिल गई है।

नेटालके ब्रिटिश भारतीय लम्बे अरसेसे अनेक गम्भीर निर्योग्यताओंसे पीड़ित हैं। ये निर्योग्यताएँ कुछ तो उन उपनिवेशके विधान-मण्डल द्वारा बनाये गये क़ानूनोंके और कुछ नगरपालिकाओं द्वारा निर्मित नियमोंके परिणाम हैं।

सम्राट्की सरकारने १९०६ के नगरपालिका कानून (म्युनिसिपल कॉरपोरेशन्स ऐक्ट) और १९०८ के नेटाल परवाना कानूनों (नेटाल लाइसेंसिंग ऐक्ट्स) को शाही-मंजूरी नहीं दी, इसलिए शिष्टमण्डल उसके प्रति आदरपूर्वक आभार प्रकट करता है। कारण, इन सब कानूनोंसे भारतीय समाजपर और ज्यादा निर्योग्यताएँ लदनेवाली थीं।

नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंको नेटालकी संसदमें व्यवहारतः कोई प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, इसलिए शाही सरकारका ही संरक्षण उनका लगभग एकमात्र आश्रय है। उनके लिए स्वशासन (सेल्फ-गवर्नमेंट) कोई विशेष या लाभप्रद अर्थ नहीं रखता।

  1. यह विवरण गांधीजीने ६ अगस्तको ही तैयार कर लिया था। देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३३७। श्री आंगलियाने इसे ११ अगस्तको उपनिवेश कार्यालय भेज दिया था। उन्होंने लॉर्ड क्रू के साथ हुई १२ अगस्तकी भेंटके अवसरपर इस सम्बन्ध में एक अतिरिक्त वक्तव्य भी दिया था; देखिए परिशिष्ट १९।
  2. १० जुलाई १९०९ को यह प्रार्थनापत्र नेटाल भारतीय कांग्रेस तथा नेटालके विभिन्न भारतीय संघों द्वारा दिया गया था, जिसमें गिरमिटके करार, मताधिकार तथा व्यापार आदि विभिन्न प्रश्नों सम्बन्धी कष्टोंका विवरण था। देखिए "लन्दन", पृष्ठ ३५४।