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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मनुष्यत्वकी हानिकी और तमाम उपनिवेशपर इस प्रथासे उत्पन्न कुपरिणामोंकी तुलनामें कुछ भी नहीं है।

लेकिन, यदि नेटालके मुख्य उद्योगोंको संकटमें डाले बिना गिरमिटिया मजदूरोंका भेजा जाना एकाएक बन्द न किया जा सकता हो तो प्रतिनिधियोंकी नम्र रायमें पूर्वोक्त विशेष कर तो अवश्य ही उठा लिया जाना चाहिए।

भारतीय विद्यार्थियोंका शिक्षण

प्रतिनिधि इस बातको बड़ी गम्भीरतासे महसूस करते हैं कि नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंको अपने बच्चोंकी शिक्षाके उन परिमित साधनोंसे भी वंचित करके, जो उन्हें आजतक मिलते रहे हैं, जानबूझकर उनके समाजके बौद्धिक विकासको रोकनेका प्रयत्न किया जा रहा है। सरकारसे सहायता प्राप्त भारतीय स्कूल ब्रिटिश भारतीय बालकोंको सिर्फ प्राथमिक श्रेणीकी शिक्षा देते रहे हैं; उपनिवेशके आम स्कूल तो भारतीय बच्चोंके लिए बिलकुल बन्द ही हैं। ऊँची श्रेणीके सरकारी स्कूलोंने भारतीय बालकोंको तेरह वर्षकी उम्रके बाद अपने यहाँ विद्यार्थीके रूपमें रखना बन्द कर दिया है। फल यह हुआ है कि यदि इन बालकोंको ऊपरकी कक्षाओं तक पहुँचनेका अवसर दिया जाये तो उन्हें वहाँ जो शिक्षा मिल सकती है, वह अब उनके लिए अप्राप्य हो गई है। इस नीतिके परिणामस्वरूप बहुतेरे भारतीय बालकोंको, जिनकी शिक्षा शुरू ही हुई थी, भारतीय स्कूल छोड़ देने पड़े हैं। शिक्षा प्राप्त करनेके साधनोंके इस अभावसे भारतीय समाजके विचारशील सदस्योंको बड़ी कठिनाई होती है और वे बहुत चिन्ता करते हैं। वे अपने बच्चोंके भविष्यके बारेमें बहुत चिन्तित हैं।

प्रतिनिधि सविनय निवेदन करते हैं कि इस महत्त्वपूर्ण बातपर यूरोपीय उपनिवेशियोंको भी उतनी ही चिन्ता होनी चाहिए; क्योंकि, उपनिवेशकी आबादीके एक हिस्सेको यदि निरक्षरतामें पड़े रहनेका दण्ड दे दिया जाये तो इसका राज्यके बौद्धिक और नैतिक जीवनपर जरूर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

पूर्वोक्त तथ्योंका खयाल करते हुए नेटालके ब्रिटिश भारतीय स्वभावत: दक्षिण आफ्रिकी उपनिवेशोंके प्रस्तावित संघको भयातुर दृष्टिसे देखते हैं। यह आम तौरपर स्वीकार की जाती है कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय-विरोधी लहर उठ रही है। प्रस्तावित संघके चार सदस्य-राज्यों में से तीन तो ब्रिटिश भारतीयोंके माने हुए विरोधी हैं। ऐसा लग रहा है कि केप भी इस विरोधी आन्दोलनमें शामिल होनेवाला है। फल यह होगा कि संघ उन सारी विरोधी शक्तियोंके योगका प्रतिनिधित्व करेगा जो अभीतक एक-दूसरेसे अलग रहकर काम कर रही थीं। इसलिए ब्रिटिश भारतीयोंको लगता है कि दक्षिण आफ्रिकाके इस प्रस्तावित संघके बन जानेसे वहाँ रहनेवाली सम्राट्की वफादार प्रजाके इस वर्गकी दशा और भी खराब हो जायगी। दो निर्योग्यताएँ तो उनपर पहलेसे ही लदी हैं; एक तो ब्रिटिश भारतीय होनेकी और दूसरी तथाकथित 'रंगदार जातियों' में गिने जानेकी।

निवेदन है कि दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे उपनिवेशोंके बारेमें चाहे जो कहा जाये, निःसन्देह शाही सरकारको तो नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंको न्याय दिलानेकी सुविधा है ही। ऐसा नहीं हो सकता कि उपनिवेश सब कुछ लेता ही रहे और दे कुछ नहीं। वह स्वयं भी स्वीकार करता है कि अपने उद्योगोंको कायम रखने और उनका विकास करनेके लिए वह शाही सरकारकी सद्भावनापर निर्भर है। नेटालको जो बराबर गिरमिटिया मजदूर भेजकर उसकी