पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/३८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२११. तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन
अगस्त १०, १९०९]

पोलक


रायटर


बंबई

सरकार रद करनेको राजी। कानून में सीमा दाखिल करना चाहती है। हमने संशोधन सुझाया [जिससे] गवर्नरको किसी भी देशके प्रवासियोंकी संख्याकी सीमा निर्धारित करनेके विनियमोंकी रचनाका अधिकार मिले। इससे हमारी टेक रह जाती है। (अच्छा होता, आप सभाकी[१] तारीखका ऐलान कर देते)।[२]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९९९/२) से।

२१२. तार: ब्रिटिश भारतीय संघको

[लन्दन
अगस्त १०, १९०९][३]

ब्रि॰ भा॰ सं॰
जोहानिसबर्ग

समझौते की बातचीत जारी। सरकार रद करनेको राजी। कानुन में सीमा दाखिल करना चाहती है। हमने आम सामान्य संशोधन सुझाया गर्वनरको किसी भी देशके प्रवासियोंकी सीमा निर्धारित करके विनियमोंकी रचनाका अधिकार मिले। इससे कानून सबके लिए समान रूपसे लागू होनेवाला बनेगा। इससे हमारी टेक रह जाती है। आशा है, रूस्तमजी हरिलालश[और] दूसरे ट्रान्सवालमें रहेंगे।[४] दाऊद लौट जायें।[५]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९९८) से।

  1. अभिप्राय बम्बईके शेरिफ द्वारा बुलाई गई सभासे है। देखिए " पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको ", पृष्ठ ३६५।
  2. अगस्त १२, १९०९ के टाइम्स ऑफ इंडिया और १९-८-१९०९ के हिन्दू में इस तारका निम्न परिवर्धित पाठ और बम्बईके एक साप्ताहिक गुजरातीके १५-८-१९०९ के अंकमें उसका गुजराती रूपान्तर प्रकाशित हुआ था: "ट्रान्सवालकी सरकार १९०७ के एशियाई कानूनको रद करनेके लिए राजी है, किन्तु वह प्रवासी कानूनमें प्रत्येक वर्ष उपनिवेशमें आनेवाले नये एशियाई प्रवासियोंकी संख्याकी सीमा निर्धारण करनेवाली एक धारा दाखिल करना चाहती है। भारतीय शिष्टमण्डलने प्रजातीय आधारपर कानूनी भेदभाव स्वीकार करनेसे इनकार कर दिया है, और यह सुझाया है कि प्रवासी कानूनमें एक ऐसी धारा दाखिल की जाये जिससे ट्रान्सवालकी सरकारको किसी भी देशके प्रवासियों की संख्याकी सीमा निर्धारित करनेके विनियमोंकी रचनाका अधिकार मिले। इस तरह कानूनी समानताका सिद्धान्त कायम रहेगा और प्रशासनिक भेदभाव करनेके मौजूदा अधिकारोंमें भी कोई रुकावट नहीं आयेगी।" सभाकी तारीख ३१ अगस्त घोषित हुई थी।
  3. जान पड़ता है, जिस तारीखको पिछला तार भेजा गया था उसी तारीखको यह भी भेजा गया था।
  4. हरिलाल गांधी और पारसी रुस्तमजी क्रमशः ९ और १० अगस्तको रिहा हुए थे। रुस्तमजीको उसी दिन फिर गिरफ्तार करके ११ अगस्तको सजा दे दी गई थी।
  5. देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३५५।