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२१३. पत्र: मणिलाल गांधीको

[लन्दन]
अगस्त १०, १९०९

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। समझौता होनेकी अब कम ही आशा है, इससे यह पत्र मंगलवारको लिखे लेता हूँ; क्योंकि अबतक जितना काम था, उससे ज्यादा रहनेकी सम्भावना है।

तुम्हारे पत्रोंमें शब्द कभी-कभी अधूरे होते हैं। इसलिए यदि तुम हमेशा पत्रको दुबारा पढ़ लेनेकी आदत बना लो तो ठीक लिखोगे।

मेरी सलाह है कि फिलहाल तो दूसरी टंकी लिये बिना ही काम चला लेना चाहिए। अब बरसातका मौसम आयेगा, इसलिए एक टंकीसे ही काम चल जायेगा। आशा है, इस बीच मैं वहाँ आ जाऊँगा। उस वक्त हम देख लेंगे।

तुमने [अपनी पढ़ाईकी] चिन्ता छोड़ दी, यह पढ़कर मुझे प्रसन्नता हुई। मैं जैसे-जैसे यहाँकी वस्तुस्थिति देखता जाता हूँ वैसे-वैसे मुझे लगता है कि यहाँ कोई खास शिक्षा ज्यादा अच्छी तरह प्राप्त की जा सकती है, यह माननेका कोई कारण नहीं है। मैं तो यह भी देखता हूँ कि यहाँ कुछ शिक्षा सदोष है। फिर भी मनमें होता है कि तुम सब यहाँ आकर कुछ दिन रहो। हम अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाते रहें, फिर जो होना है वह होगा। तुम वहाँ मन लगाकर पढ़ो, यह यहाँ आनेकी तैयारी करनेके समान है। श्री वेस्टकी माँ लन्दनसे १५० मील दूर ही हैं, फिर भी कभी लन्दन नहीं आई। लन्दनसे लाउथकी यात्रा साढ़े तीन घंटेकी है।

जमीनमें हम जितने फलके पेड़ोंकी देखभाल कर सकते हैं उससे अधिक पेड़ हैं। इससे हमारी कुशलताकी कमी प्रकट होती है। जितनी देखभाल खुद तुमसे हो सके उतनी करना।

अनीबहनकी तबीयत कैसे खराब हुई, क्या हुआ और वह कितने दिनके लिए टोंगाट गई हैं, आदि समाचार मुझे देना।

काबाभाईके घर पुत्र-प्राप्ति हुई, यह तो खुश होने लायक बात है। फिर भी मेरे विचार तुम जानते हो। उनके अनुसार मुझे दुःख भी होता है। मैं देश और कालका विचार करते हुए यह मानता हूँ कि इस समय तो बहुत ही कम भारतीयोंको विवाह करना चाहिए। विवाहका अर्थ भी बहुत गहन है। विषय-सेवनके लिए जो व्यक्ति विवाह करता है वह पशुसे भी हीन है। विवाहितोंका केवल सन्तानोत्पत्तिके लिए मैथुन करना उचित माना जाता है। ऐसा धर्म-शास्त्र भी कहते हैं। इस दृष्टिसे जो सन्तान इस समय उत्पन्न होती है वह विषय-वृत्तिकी उत्पत्ति है। इसीसे ये सन्तानें हीन और नास्तिक हो जाती हैं, और बनी रहती हैं। इस समय मैं तुम्हारे साथ इससे अधिक चर्चा नहीं करता, क्योंकि उसके लिए अधिक गहराईमें उतरना पड़ेगा। किन्तु ऊपर जो लिखा है उसका आशय तुम समझो, यह मेरी इच्छा है। समझकर इन्द्रियोंपर विजय पाओ। मेरे ऐसा लिखनेसे तुम यह भय तनिक भी न करना कि बापू २५ वर्षके आगे भी विवाह न करनेके लिए बाँधना चाहते हैं। मैं तुम्हारे ऊपर या