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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसीके भी ऊपर अनुचित दबाव डालना नहीं चाहता। केवल सलाह देना चाहता हूँ। पच्चीस वर्ष तक भी तुम विवाहका विचार न करो तो मुझे तुम्हारा विशेष कल्याण दिखाई देता है। लेकिन उस समय विवाह करनेका विचार हो तो भी विवाहका अर्थ क्या है, यह तुमको काबाभाईके आदर्शसे समझाता हूँ। तुम बालक हो, फिर भी तुमको ऐसे ज्ञानपूर्ण विषयमें लिखता हूँ। इसका कारण यही है कि तुम्हारे चरित्र के सम्बन्ध में मैं बहुत ऊँचे विचार रखता हूँ। तुम्हारी आयुके दूसरे बालकको मैं ऐसे विचार नहीं लिखूँगा, क्योंकि वह समझ नहीं सकेगा।

बाके और दूसरे पत्रोंमें अधिक देखोगे। ये पत्र अब फिर लिखूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ८५) से।
सौजन्य : श्रीमती सुशीलाबेन गांधी।

२१४. पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

[लन्दन]
अगस्त ११, १९०९

महोदय,

लॉर्ड क्रू ने श्री हाजी हबीबको और मुझे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके संघर्षके सम्बन्धमें कल जो मुलाकात दी थी, उसके बारेमें मैं यह जिक्र करना चाहता हूँ कि दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति (साउथ आफ्रिका ब्रिटिश इंडियन कमिटी) को लोरेंसो मार्क्विससे एक तार[१] मिला है। उससे मालूम हुआ है कि शायद सौ ब्रिटिश भारतीयोंके——सम्भवतः अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके——उस बन्दरगाहके रास्ते भारतको निर्वासित किये जानेकी सम्भावना है। लॉर्ड महोदयको निःसन्देह ज्ञात है कि निर्वासनके इस तरीकेसे बहुत कष्ट हुआ है और इसके सम्बन्धमें उपनिवेश कार्यालयसे बार-बार पत्र-व्यवहार किया गया है।

फिर भी इस प्रश्नके निर्णयके सम्बन्धमें जो बातचीत चल रही है उसको ध्यान में रखते हुए, क्या मैं लॉर्ड क्रू महोदयसे प्रार्थना कर सकता हूँ कि वे कमसे कम बातचीतके दरमियान ऐसे निर्वासनोंको स्थगित करवानेकी दृष्टिसे, हस्तक्षेप करें।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स २९१/१४२ तथा टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५००२) से।

  1. द॰ आ॰ वि॰ मा॰ समिति के मन्त्रीने उसी दिन विदेश कार्यालयको तारका हवाला देते हुए पत्र लिखा था। तार यह था: "यहाँसे शायद सौ लोगोंका किसी भी दिन निर्वासन। हस्तक्षेपके सम्बन्ध में कोई उत्तर नहीं। कौंसलने साम्राज्य सरकारको १६ जुलाईको लिखा।" इस मामलेकी ओर लोरेंसो माक्विस स्थित ब्रिटिश कौंसलका ध्यान दिलाया गया था; लेकिन उत्तर नहीं मिल रहा था।