पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२. साम्राज्य सरकारके विचार

हमने अपने अंग्रेजी विभागमें ब्रिटिश संसदमें दिये गये भाषणोंका विवरण छापा है । उनमें उपनिवेश-उपमन्त्री कर्नल सोलीका भाषण पठनीय है । उन्होंने कहा है कि ट्रान्सवाल सरकारसे बातचीत चल रही है । भाषणमें यह भी बताया गया है कि जिन लोगोंको उपनिवेशों में रहनेका अधिकार प्राप्त है, उन्हें गोरोंके समान हक दिये जाने चाहिए और पूर्ण नागरिक मानना चाहिए । अब इसपर हम यह कह सकते हैं कि जिन लोगोंको यहाँ रहनेका अधिकार प्राप्त है, उनके हितकी दृष्टिसे उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंको भी उपनिवेशमें प्रवेश करनेकी छूट दी जानी चाहिए । फिर, हम कर्नल सीलोके भाषण से यह भी देख सकते हैं कि यदि हम पूरा उद्योग करें तो साम्राज्य सरकार हमारी सहायता कर सकती है । कुंजी हमारे हाथ में है । हमें केवल सत्याग्रही बनने की आश्यकता है ।

[ गुजराती से ]

इंडियन ओपिनियन, ५-९-१९०८

३. रिचको स्थिति

श्री रिचके' जो पत्र आते हैं, उनसे बड़ा दुःख होता है । समाज बहुत-कुछ करता है, लेकिन [ उनकी ] कद्र नहीं करता । श्री रिच जो काम कर रहे हैं, उसे बहुत थोड़े ही गोरे और भारतीय कर सकते हैं । श्री रिचको वेतनकी परवाह नहीं है । ऐसे मनुष्यको सदा पैसेकी तंगीमें रखना हमारे लिए शर्म की बात है ।

श्री रिचको पहले ३०० पौंड भेजनेकी बात थी । उसमें से केवल १०० पौंड भेजे गये हैं । बाकी २०० पौंड भेजना तो अलग, आज उनके पास घर-खर्च के लिए भी पैसे नहीं भेजे जा रहे हैं । यही नहीं, कार्यालयका खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है । हमें दीर्घसूत्रताकी आदत है, और इसमें हम दूसरोंके कष्टोंका भी खयाल नहीं करते । ऐसी स्थिति में समिति अधिक दिनों तक चल सकेगी, यह नहीं जान पड़ता । इसलिए प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है कि उससे जितनी बने, उतनी मदद करे । जो लोग बिलकुल बिना पैसेके ऐसा महान संघर्ष चलानेको आशा करते हैं, वे गलती करते हैं । मुझे उम्मीद है कि समाज श्री रिचके लिए [पैसेका] तत्काल प्रबन्ध करेगा; अन्यथा समितिको टूटते देर नहीं लगेगी और पीछे हमारे लिए केवल हाथ मलना ही रह जायेगा ।

[ गुजराती से ]

इंडियन ओपिनियन, ५-९-१९०८

१. दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति (साउथ आफ्रिका ब्रिटिश इंडियन कमिटी), लन्दनके मन्त्री एल० डब्ल्यू० रिच । समितिको स्थापना " दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंको उचित और न्यायपूर्ण व्यवहार प्राप्त करानेके लिए ” १९०६ में हुई थी; देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २४३-४४; खण्ड ७, पृष्ठ २७९-८० ४१०-११; खण्ड ८, पृष्ठ ६३ और १०२-०३ ।

Gandhi Heritage Portal