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२१५. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अगस्त ११, १९०९

लॉर्ड महोदय,

मैं आपके १० तारीखके पत्रके लिए आपको नम्रतापूर्वक धन्यवाद देता हूँ।

मुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरी सुझाई धारासे सन्तोष हुआ है।[१] मैं कहना चाहूँगा कि इस धारासे मेरी रायमें किसी मूलभूत सिद्धान्तका त्याग नहीं करना पड़ता।[२]

चूँकि बातचीत अभी जारी रहनी है, इसलिए विवरणको समाचारपत्रके सम्पादकों या हमदर्दीको न भेजना शायद अच्छा होगा। समाचारपत्रोंके सम्पादकोंको, सम्पादकोंकी हैसियतसे, ऐसी किसी चीजमें शायद ही दिलचस्पी होती है, जो उनको प्रकाशनार्थ भेजी नहीं जाती; और हमदर्दोंको भेजनेमें, जबतक उनको यह न बता दिया जाये कि हो क्या रहा है, मुझे संकोच होता है। इसलिए यदि आप मंजूर करें तो जबतक बातचीत चलती है तबतक इस विवरणको वितरित नहीं करूँ।[३]

यद्यपि मैं जानता हूँ कि आपका समय ले रहा हूँ, फिर भी चूँकि मैं जो-कुछ भी हो रहा है, उस सबसे आपको अवगत रखनेके लिए चिन्तित हूँ, इसलिए इसके साथ उस पत्रकी[४] नकल भेजता हूँ, जो मैंने लॉर्ड क्रू को लिखा है। आशा है आप इससे सहमत होंगे।[५]

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०००) से।

  1. देखिए "पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको", पृष्ठ ३४१-४२। लॉर्ड, ऍम्टहिलने इसपर टिप्पणी करते हुए कहा था: "जहाँतक मैं समझता हूँ, अगर कानूनमें ही यह दे दिया जाये कि हर साल छ: भारतीय स्थायी निवासियोंके रूप में दाखिल किये जा सकेंगे तो दरअसल आपका यह हक मंजूर हो जायेगा, यद्यपि सचमुच यह बहुत सीमित होगा। आप जिस सैद्धान्तिक और अप्राप्य इकके लिए लड़ रहे हैं उसके मुकाबले में ऐसे अधिकारकी प्राप्ति एक व्यावहारिक और निश्चित लाभ होगा, चाहे यह अधिकार सीमित ही होगा। आप जो 'धारा' सुझा रहे हैं वह मुझे कठिनाईका एक चतुराई-भरा हल दिखलाई पड़ता है। उसका जो कुछ भी उपयोग किया जा सकता है, उसे करनेका मैं तुरन्त प्रयत्न करूँगा; और यह प्रकट न करूँगा कि वह सुझाव आपने भेजा है।
  2. यह वाक्य लॉर्ड ऍम्टहिलके इस कथनसे सम्बन्ध रखता है: "यह जानकर मुझे बेहद खुशी हुई है कि आप इस हद तक बलिदान करनेके लिए तैयार हैं, क्योंकि हमारी कल जो बातचीत हुई उसके बाद मुझे समझौतेकी आशा नहीं रही थी।"
  3. लॉर्ड ऍम्टहिल्का खयाल था कि समाचारपत्र-सम्पादकोंको केवल जानकारीके लिए और हमददौंको निजी तौरसे उपयोग करनेके लिए "विवरण" की प्रतियाँ भेज देनेसे काममें शायद कुछ मदद मिलेगी।
  4. देखिए पिछला शीर्षक। लॉर्ड एम्टहिलने अपने १२ अगस्तके उत्तर में इस विषयपर विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि गांधीजीका पत्र विवेकपूर्ण और संयत है, निर्वासनकी घटना उनके कार्यके पक्षमें जायेगी और मैं इसे बातचीत में सहायता करनेवाला एक प्रबल साधन मानता हूँ।
  5. लॉर्ड ऍटहिलने १२ अगस्तको इस पत्रकी प्राप्ति-सूचना देते हुए गांधीजीको सूचित किया था कि जैसे ही उन्हें गांधीजीका वह पत्र मिला जिसमें 'धारा' का सुझाव था, वैसे ही उन्होंने जनरल स्मट्सको और लॉर्ड क्रू को लिखा और इन सुझावोंको अपने सुझावोंके रूपमें पेश किया और उनकी मंजूरीके लिए अपने दृष्टिकोणसे भी जोर दिया है। इस पत्र व्यवहारके लिए देखिए परिशिष्ट २०।
९-२३