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२१७. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
अगस्त १३, १९०९

प्रिय हेनरी,

आशा है कि आपको बातचीत और नये संशोधनके[१] सम्बन्धमें मेरा तार मिल गया होगा। संलग्न प्रतिसे[२] आपको सप्ताहकी घटनाओंकी पूरी जानकारी मिल जायेगी।

अब मुझे आपके उस तारके सम्बन्धमें कुछ कहना है जिसमें आपने सुझाव दिया है कि श्री दाउद मुहम्मदको भारत आना चाहिए। मुझे विश्वास है कि यह आपकी अपनी राय नहीं है, बल्कि आपने सूरतके मित्रोंकी सम्मति-मात्र तारसे भेज दी है। आपको याद होगा, श्री दाउद मुहम्मदने सार्वजनिक घोषणा की थी कि जबतक यह प्रश्न समाप्त नहीं होता तबतक वे, जानकी जोखिम होनेपर भी, ट्रान्सवाल न छोड़ेंगे। इसलिए उनके लिए यह परम आवश्यक है कि, अन्य कारणसे न सही तो अपनी प्रतिष्ठाके खयालसे ही सही, वे ट्रान्सवाल लौटें और फिर अपनी गिरफ्तारीके लिए सरकारको चुनौती दें। लेकिन अन्य दृष्टियोंसे भी यह प्रकट होता है कि उनकी उपस्थिति भारतकी अपेक्षा ट्रान्सवालमें अधिक वांछनीय है। हम वहाँ जितनी हो सकें उतनी सभाएँ करना चाहते हैं। इन सब सभाओंका लाभ केवल तभी है जब अनाक्रामक प्रतिरोधकी आग प्रज्वलित रखी जाये। मैं और आप जानते हैं कि श्री दाउद मुहम्मद इस काममें कितना कारगर योगदान कर सकते हैं। फिर, हम सभाएँ करनेके लिए बम्बईमें उनके पहुँचने तक नहीं रुक सकते। वे सभाएँ अभी, शिष्टमण्डलके लन्दनमें रहते हुए, की जानी चाहिए। वे शिष्टमण्डलके खाली हाथ दक्षिण आफ्रिका वापस आ जानेपर भी हो सकती हैं। लेकिन इतने लम्बे संघर्षका अनुमान करके हमें श्री दाउद मुहम्मदको भारत भेजनेकी उतावली नहीं करनी चाहिए। और अन्तमें, बातचीत हर क्षण प्रगति कर रही है, और वह सफल होगी, ऐसी आशा करनेके सब कारण मौजूद हैं। यदि ऐसी बात है, तो ट्रान्सवालके सम्बन्धमें सभाएँ करनेके लिए श्री दाउद मुहम्मदकी भारतमें जरूरत नहीं है। यदि आम शिकायतोंके सम्बन्धमें उनकी आवश्यकता हो तो उन्हें ट्रान्सवालका मामला समाप्त होनेपर भेजा जा सकता है। उसके लिए बहुत समय है। इसलिए मैं कल[३] तार दूँगा कि फिलहाल दाउद मुहम्मदको ट्रान्सवालमें ही रहना चाहिए।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५००७) से।

  1. देखिए "तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३५०।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. ऐसा लगता है कि यह तार दरअसल १६ अगस्तको भेजा गया था; देखिए "तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलको", पृष्ठ ३५७।