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२१८. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–७]

[अगस्त १३, १९०९]

जब समझौतेकी बातचीत चलती है तब सार्वजनिक रूपसे देने लायक खबरें सदा कम होती हैं। पिछले हफ्ते मेरा खयाल था कि इस हफ्ते निश्चित खबर दे सकूँगा। किन्तु अब देखता हूँ कि यह हफ्ता भी निश्चित खबरके बिना बीत गया है। फिर भी बातचीत प्रगति करती जा रही है। लॉर्ड ऍम्टहिलसे सोमवारको मुलाकात हुई। उनके साथ श्री हाजी हबीब, श्री रिच और मैं लगभग डेढ़ घंटे तक बैठे और बहुत बातें हुईं। मंगलवारको लॉर्ड क्रू से भेंट हुई। मैं ऐसा मानता हूँ कि उन्होंने बहुत अच्छा जवाब दिया है। उन्होंने जनरल स्मट्सके साथ बातचीत करना स्वीकार कर लिया है।

अभी, बातचीत चल रही है जबकि डेलागोआ-बेसे तार मिला है कि लगभग सौ भारतीयोंके सीमा पार किये जानेकी सम्भावना है। इस तारकी खबर लॉर्ड क्रू को भेज दी है।[१] इस सम्बन्धमें यथासम्भव तजवीज की जा रही है।

यह पत्र लिखते समय जोहानिसबर्ग से तार[२] मिला है। उससे सत्याग्रहियोंकी रिहाई और रुस्तमजीके तुरन्त फिरसे प्रवेश करनेकी खबर प्राप्त हुई है। यह तार भी पढ़ा कि उनको छ: महीनेकी सख्त कैदकी सजा दे दी गई है। इसको पढ़कर मुझे प्रसन्नता भी हुई और मैं रोया भी। मुझे श्री रुस्तमजीसे यही आशा थी। उन्होंने हद कर दी है। मुझे प्रसन्नता इससे हुई कि ऐसे भारतीय हममें मौजूद हैं। मैं रोया इसलिए कि उनको ऐसे दुःख भोगने पड़े हैं। ऐसे उदाहरण जब अगुआ भारतीय प्रस्तुत करेंगे तभी जनता साँचेमें ढलेगी। इस उदाहरणका अनुकरण सब लोग करें तो भारतीयोंको कोई दुःख भोगना ही न पड़े। मैं ज्यों-ज्यों अनुभव करता जाता हूँ त्यों-त्यों देखता जाता हूँ कि अभी तो ऐसे बहुत-से भारतीय सपूत मौजूद हैं जो देशकी खातिर घोर कष्ट सहन करनेके लिए तैयार हैं। समझौता हो तब तो ठीक ही है। किन्तु यदि न हो तो मेरी प्रत्येक भारतीयसे यही प्रार्थना है कि "किये हुए प्रणको कभी न छोड़े। अनुचित सुखके मुकाबले उचित दुःख बहुत सुखदायक है। हमारी गई-गुजरी हालत में तो मौज-शौकका हमें कोई हक ही नहीं है। थोड़े दिन सहन करनेके बाद हम इस दुःखके आदी हो जायेंगे। इसलिए आप दुःख सहन करनेकी आदत डालें।" इसके सिवा दूसरा इलाज मैं तो जानता नहीं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-९-१९०९
 
  1. देखिए "पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको", पृष्ठ ३५२।
  2. इस तारपर १२ अगस्त की तारीख है और यह्न १३ अगस्तको लन्दन पहुँचा।