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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थक जाते हैं, और फिर भी वे मुँहसे शिकायतका एक लफ्ज़तक नहीं निकालते। इसीमें उनकी बहादुरी है।

प्रिटोरियाकी सारी बस्ती खाली है।[१]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: २९१/१४२; और टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९४९ और ५०१५) से भी।

२२२. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अगस्त १६, १९०९

लॉर्ड महोदय,

मैं आपके देखनेके लिए उस पत्रकी[२] एक प्रतिलिपि इसके साथ भेज रहा हूँ, जो मैंने उपनिवेश-मन्त्रीके निजी सचिवके नाम लिखा है। मुझे आशा है कि पत्र आपको ठीक लगेगा।

मैं आपका ध्यान इस सप्ताहके 'इंडियन ओपिनियन'[३] की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ। नागप्पन नामक भारतीयकी मृत्युके बारेमें की गई जाँचसे प्रकट होता है कि दुर्व्यवहारके सम्बन्धमें जो आरोप लगाये गये थे वे यथेष्ट रूपसे सिद्ध हो गये हैं। 'ट्रान्सवाल लीडर' ने जेल अधिकारियोंके व्यवहारकी बड़ी कड़ी निन्दा की है। श्री रिचने इस कार्रवाईकी ओर लॉर्ड क्रू का ध्यान आकर्षित किया है।[४]

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५०१६) से।

  1. ट्रान्सवालके मन्त्रियोंने ३० सितम्बरको इसका जवाब देते हुए गवर्नरको बताया कि "प्रिटोरिया कैढियोंके रिजर्व कैम्पमें पानी की कमीका आरोप बिल्कुल मिथ्या है", कैदियोंको स्नानादिकी भरपूर सुविधाएँ हैं और खाँने अपने वक्तव्यमें जो अन्य दोषारोपण किये हैं वे निराधार हैं। उन्हें उनकी इच्छानुसार ही गुनहखानों में रखा गया है पर उनके साथ मनुष्योचित बरताव किया जाता है। जेलके अधिकारियोंकी उनके साथ कठोर बरताव करने की कोई इच्छा नहीं है क्योंकि वे अनाक्रामक प्रतिरोधी हैं।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. यह इंडियन ओपिनियनका १७-७-१९०९ का अंक था। इसमें ८-७-१९०९ के ट्रान्सवाल लीडरसे वह रिपोर्ट उद्धृत की गई थी जो उसके प्रिटोरिया-स्थिति संवाददाताने भेजी थी और जो सामी नागप्पनकी मृत्युकी सरकारी जाँचके सम्बन्धमें थी। जाँच जोहानिसबर्ग के गवर्नर श्री बेटमैन द्वारा की गई थी। इंडियन ओपिनियन में १० जुलाईके लीडरका वह आलोचनात्मक सम्पादकीय भी प्रकाशित हुआ था जिसमें जेलकी प्रचलित व्यवस्था और जाँचके तरीकेकी टीका भी थी, और नागप्पनके मामलेकी निष्पक्ष जाँचकी माँग की गई थी। इस अंकमें प्रिटोरिया न्यूज़ और ज्यूइश क्रॉनिकल द्वारा की गई तरसम्बन्धी टीकाएँ भी उद्धृत की गईं थीं और अनेक यूरोपीय पादरियों द्वारा ट्रान्सवालके अखबारोंको भेजे गये पत्र भी प्रकाशित किये गये थे। आखिर सरकारको जनमतके सामने झुकना पड़ा था और प्रिटोरियाके असिस्टेंट रेजिडेंट मजिस्ट्रेट मेजर एफ॰ जे॰ निक्सन खुली जाँचके लिए नियुक्त किये गये थे। देखिए "पत्र : साउथ आफ्रिकाको", पृष्ठ ४८३-८४।
  4. श्री रिचने सरकारी जाँचकी रिपोर्टकी एक प्रति उपनिवेश कार्यालयको १६ अगस्तको भेज दी थी।