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२२३. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[ लन्दन ]
अगस्त, २०, १९०९

प्रिय हेनरी,

जहाजसे उतरनेसे कुछ पहलेका लिखा हुआ आपका पत्र पाकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। मुझे पूरी आशा थी कि आप जहाजपर सब काम कर डालेंगे और उन दोनों वक्तव्योंको तैयार कर लेंगे। परन्तु मैंने यह भी आशा की थी कि आप यथेष्ट विश्राम करेंगे और आवश्यकतासे अधिक श्रम न करेंगे। मैं उन दोनों पुस्तिकाओंकी[१] राह देख रहा हूँ जिन्हें रिचने 'पुस्तक' का नया नाम दिया है।

मुझे आशा है कि मेरे पिछले समुद्री तारके बाद आपको नये संशोधनकी विषयवस्तु समझने में कठिनाई न रही होगी। खैर, मेरे पत्र, जिनमें पहला और दूसरा संशोधन दिये गये हैं, शीघ्र ही आपको मिलेंगे और उनसे आपको यहाँकी वास्तविक स्थितिका पता चल जायेगा। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि यह पत्र लिखते समय तक हमारी स्थिति वही है जो गत सप्ताह थी। मैंने सोचा था कि इस सप्ताह के प्रारम्भमें हमें निश्चय ही परिणामका पता लग जायेगा। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। लेकिन लॉर्ड ऍम्टहिलने अपने पिछले पत्रमें[२] लिखा है कि उन्हें लॉर्ड क्रू या जनरल स्मट्ससे किसी भी घड़ी उत्तर पानेकी आशा है। हम श्री श्राइनरसे कल भेंट करेंगे। इस भेंटमें हम उस विषयपर आगे चर्चा करेंगे जिसका उल्लेख आपको इस पत्रके साथ रखी गई नकलमें[३] मिलेगा।

नेटालके मित्रोंने[४] आफ्रिकी बैंकिंग कॉर्पोरेशनके कार्यवाहक मैनेजरकी मार्फत श्री बॉटमलीसे भेंट की है। श्री बॉटमली निश्चय ही बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उनकी मार्फत वे कल कर्नल सीलीसे भी मिले और सम्भवतः उनसे फिर भेंट करेंगे। इस मामलेकी चर्चा वे 'जॉन बुल' में भी करेंगे। इस प्रकार कुछ हंगामा तो मच जायेगा, परन्तु

  1. ये पुस्तिकाएँ ट्रान्सवालकी समस्याओं और दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके सर्वसाधारण कष्टोंके सम्बन्ध में लिखी गई थीं। श्री पोलकने इस सम्बन्ध में गांधीजीको २१ अगस्तके अपने पत्र में लिखा था: "मैंने ट्रान्सवालके कष्टोंपर एक पुस्तिका तैयार की है और उसकी कुछ प्रतियाँ आपको आजकी डाक से भेजनेकी सोची थी पर वह नहीं बन पड़ा। श्री गोखलेने इसे पढ़ा है। उनके खयाल से, कहीं-कहीं अत्यधिक उग्र होते हुए भी (अत: मैंने इसे कुछ-कुछ नरम कर दिया है) यह ठीक है और उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी है। इसकी २० हजार प्रतियाँ छपवाकर प्रकाशित करनेके खर्चेका जिम्मा व्यक्तिगत रूपसे श्री जहाँगीर पेटिटने ले लिया है। पुस्तिका सचित्र है। तसवीरें मेरे पास थीं। इनमें एक चित्र प्रिटोरिया जेलका और दूसरा फोक्सरस्ट जेलका होगा...। " पुस्तकका नाम ए टेजेडी ऑफ एम्पायर : द ट्रीटमेन्ट ऑफ ब्रिटिश इंडियन इन द ट्रान्सवाल था। दूसरी पुस्तिका के लिए देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३३६।
  2. यह पत्र १६ अगस्तको लिखा गया था।
  3. यह उपलब्ध नहीं है।
  4. नेटाल शिष्टमण्डल के सदस्य।