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२२४. लन्दन

[अगस्त २०, १९०९ के आसपास]

संघ-विधेयक

संघ-विधेयक (यूनियन बिल) पास हो गया। श्री श्राइनर और डॉक्टर अब्दुर्रहमान आदिने [उसे रुकवानेका] बहुत प्रयत्न किया, लेकिन कुछ बना नहीं। शायद उनके प्रयत्नोंका असर अच्छा हुआ होगा। कई सदस्योंने लम्बे-लम्बे भाषण दिये। कानूनमें काला [जातीय भेदभावका] धब्बा उनको अच्छा नहीं लगा। उन्होंने इसपर खेद प्रकट किया। किन्तु इससे क्या लाभ? वे अपने पद क्यों नहीं छोड़ देते? खेद प्रकट करनेके बाद भी वे काम तो वही करते हैं। अब काले लोग क्या करें? यह प्रश्न तो उठता ही नहीं। यदि उनमें शक्ति है तो वे रामका नाम लेकर सत्याग्रहका डंका बजायें; अन्यथा वे मुर्दोकी भाँति ही हैं। वे यहाँ आकर बड़े-बड़े भाषण दे गये, इससे कोई लाभ होनेवाला नहीं है। भाषणोंसे ही कुछ प्राप्त कर लेनेके दिन चले गये जान पड़ते हैं।

नेटालका शिष्टमण्डल

नेटालके प्रतिनिधि नेटालकी दशाका विवरण[१] समस्त संसारमें भेजनेके काममें जुटे हुए हैं। उन्होंने यह विवरण बहुत-से स्थानोंमें भेजा है। इसके अलावा वे संसदके सदस्य श्री बॉटमलीसे भी मिले हैं। श्री बॉटमली उनकी उचित खातिर कर रहे हैं। उन्होंने उनको चायकी दावत दी थी और दूसरे निमन्त्रण भी दिये हैं। उनकी मार्फत ही उनकी लॉर्ड क्रू से भेंट हुई है। अब दूसरी बार भेंट करेंगे। श्री बॉटमली उनकी अच्छी सहायता कर रहे हैं। लेकिन नेटालवासी भारतीयोंकी मुक्ति तो सत्याग्रहकी राहसे ही सम्भव है, यह बात सभीको समझ लेनी चाहिए। जीते रहे तो देखेंगे भी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-९-१९०९

२२५. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–८]

[अगस्त २१, १९०९ के बाद]

इस हफ्ते मेरे पास देने योग्य खबर बहुत ही कम। समझौतेकी बातचीत जारी। लेकिन परिणाम अभीतक नहीं निकला है। 'टाइम्स' में एक लेख है। उससे प्रतीत होता है कि शायद परिणाम अच्छा निकलेगा। उसका यह लेख किसी जानकारका लिखा दिखाई देता है। वह लिखता है कि आशा है, श्री स्मट्स ऐसा स्पष्टीकरण कर देंगे, जिससे भारतीयोंकी भावनाओंको ठेस न पहुँचे।

  1. देखिए "नेटालवासी भारतीयोंके कष्टोंका विवरण", पृष्ठ ३४३-४९।