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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय


हम श्री श्राइनरसे मिले।[१] बहुत लम्बी बातचीत हुई। उन महानुभावको भी ऐसा लगता है कि रियायतके तौरपर छः व्यक्ति प्रवेश करें तो इसमें कहने योग्य कोई बात नहीं होगी; लेकिन वे अधिकारके रूपमें प्रवेश नहीं कर सकते। वे स्वयं जो विचार मनमें बाँधते हैं, सचाईके साथ बाँधते हैं। लेकिन वे बहुत समयसे यह खयाल बनाये बैठे हैं कि हम भारतीय हीन लोग है; इसलिए वे यह नहीं समझ पाते कि भारतीयोंके लिए रियायतके तौरपर प्रवेश करना अपमानजनक बात है।

[गुज़रातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-९-१९०९

२२६. पत्र: डॉ॰ अब्दुर्रहमानको

[लन्दन] अगस्त २३, १९०९

प्रिय डॉ॰ अब्दुर्रहमान,

अपने कार्यके सम्बन्धमें कृपया मेरी सहानुभूति और बधाई स्वीकार करें। मेरी सहानुभूति इसलिए है कि आपको कोई ठोस चीज नहीं मिली है; और बधाई इसलिए कि अपने उद्देश्यकी सहज न्याय्यताके कारण और वैसे ही आपके किये हुए ठोस कार्यके कारण आपका शिष्टमण्डल जितना सफलताका पात्र है उतना और कोई शिष्टमण्डल नहीं है। श्री श्राइनरने निःसन्देह, सच्चे दिलसे और अति-मानवकी तरह काम किया है।

यह तो मानी हुई बात थी कि विधेयकके मसविदे (ड्राफ्ट बिल) में कोई संशोधन न किया जायेगा। साम्राज्यकी एक कानूनकी किताबमें प्रजातीय (रेशियल) प्रतिबन्ध दाखिल करनेपर लगभग हरएक सदस्यने खेद प्रकट किया है, इस बातसे कोई चाहे तो जितनाकुछ सन्तोष प्राप्त हो सकता है, उतना प्राप्त कर ले; परन्तु मैं या आप तो खेद- प्रकाशको लेकर जी नहीं सकते। आप व्यस्त हैं, मैं भी व्यस्त हूँ। अगर मैं व्यस्त न होता तो मैं जो सान्त्वना दे सकता हूँ उसे देने आपके पास निश्चय ही आता। फिर भी मैं जानता हूँ कि सच्ची सान्त्वना तो अपने भीतरसे ही आती है। जहाजमें हमारी जो बात हुई थी, मैं आपको सिर्फ उसकी याद दिला सकता हूँ। आपको निराशा हुई है (यदि हुई है तो)। आप संसदसे या ब्रिटिश जनतासे कुछ आशा करते थे। लेकिन आप अगर अपने आपसे कोई आशा नहीं करते तो आपको उनसे आशा क्यों करनी चाहिए?

मैंने आपको थोरोकी 'सविनय अवज्ञाका कर्तव्य' ('ड्यूटी ऑफ़ सिविल डिसओबिडि-एन्स') पुस्तक भेजनेका वादा किया था। मुझे वह पुस्तक मिली नहीं। मैं उसके लिए आज पत्र लिख रहा हूँ। आशा है, आपके जाने से पहले भेज दूँगा।

इसके अतिरिक्त तो यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि ईश्वर आपको दक्षिण आफ्रिकामें आन्तरिक सुधारके साथ-साथ इस कामको, और इसलिए अनाक्रामक प्रतिरोधको, जारी रखनेकी शक्ति और सामर्थ्य दे, भले ही आरम्भमें आप सिर्फ मुट्ठीभर ही हों।

  1. यह भेंट २१ अगस्तको होनेवाली थी; देखिए "पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३६१।