पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४०४

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२२८. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अगस्त २४, १९०९

लॉर्ड महोदय,

बम्बईसे अभी प्राप्त एक तारके सम्बन्धमें मैंने लॉर्ड क्रू को पत्र[१] भेजा है। उसकी एक नकल नम्रतापूर्वक इसके साथ नत्थी कर रहा हूँ।

पत्रसे सब बात विदित हो जायेगी, किन्तु मैं इतना और कहना चाहता हूँ कि ये निर्वासन अधिकाधिक गम्भीर और अनुचित होते जा रहे हैं। श्री पोलकने, जो तारके प्रेषक हैं, आज प्राप्त हुए पत्रमें खबर दी है कि वे 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के स्थानापन्न सम्पादक, सर फीरोजशाह मेहता और अन्य प्रमुख व्यक्तियोंकी सलाहसे कार्य कर रहे हैं [२]

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०२६) से।

२२९. तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
अगस्त २५, १९०९

प्रगति जारी, लेकिन अब भी बहुत अनिश्चित। निर्वासितोंको सभामें हाजिर करें। भारतकी सहानुभूतिकी ठोस अभिव्यक्तिके रूपमें संघर्षमें सहायतार्थ पैसा-चन्दाके प्रस्तावका सुझाव। बोमनजी जानते हैं।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०२९) से।

 
  1. देखिये पिछला शीर्षक।
  2. लॉर्ड ऍम्टहिलने इस पत्रकी पहुँच २५ अगस्तको दी थी। उन्होंने लिखा था कि मैंने लॉर्ड क्रू को पत्र लिखा है। ज्यों ही मुझे उनका उत्तर मिलेगा त्यों ही मैं "यह ज्यादा अच्छी तरह कह सकूँगा कि हमारे मौन और प्रतीक्षाके वर्तमान रुखको छोड़नेका वक्त आया है या नहीं।"