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लन्दन

टाइम्समें लेख

टाइम्समें यह लेख निकला था कि शिष्टमण्डलने अपनी मताधिकारकी माँग छोड़ दी है। उसके अलावा दूसरी भी गलत बातें थीं। इसलिए श्री आंगलियाके हस्ताक्षरोंसे एक पत्र[१] भेजा गया था। उसका सार नीचे देता हूँ:

आपने अपने कलके अखबारमें लिखा है कि "संसदीय मताधिकारके सम्बन्धमें नेटालके भारतीयोंका कोई झगड़ा नहीं है।" हमारी हालकी लड़ाई राजनीतिक मताधिकारके सम्बन्धमें नहीं हैं। फिर भी यह बात तो सही है कि हमारी माँगोंमें से एक माँग उसके सम्बन्धमें है। हमारी मांगें तो बहुत हैं। लेकिन फिलहाल जो बहुत ही जरूरी हैं वे ही लॉर्ड क्रू के सामने पेश की गईं हैं, ताकि हम उनका ध्यान पूरे मनोयोगसे उनकी ओर ही आकर्षित कर सकें। अगर परवाना अधिकारी (लाइसेन्सिंग ऑफिसर) की कलमकी एक हरकतसे हमारी गुजर-बसरके साधन छिन जाते हैं, हमारे अधिकार चाहे जितने पुराने हों तो भी उस अधिकारीके फैसलेके विरुद्ध अपीलका अधिकार नहीं मिलता, हमारे बालकोंकी शिक्षाका द्वार बन्द करके उनकी मानसिक शक्तिका विकास रोक दिया जाता है और सर्वनाशी भारी कर लगाकर समर्थ भारतीय मजदूरोंको गुलाम रखा जाता है तो कोरे राजनीतिक अधिकारसे हमको क्या लाभ पहुँच सकता है?
हमने अंग्रेज प्रजाके सामने जो तीन माँगें रखी हैं, उनको सभी लोगोंने उचित माना है। ये हमारी शारीरिक और मानसिक उन्नतिसे सम्बन्धित हैं। नेटाल जैसे जनतन्त्री राज्यमें भारतीयोंको मताधिकार नहीं है, यह कोई छोटी शिकायत नहीं है। किन्तु मौजूदा हालतको ध्यानमें रखते हुए हम अभी इस सम्बन्धमें जोर नहीं दे रहे हैं। हम अपनी स्वाभाविक मर्यादामें रहते हैं, इसीसे हमारी राजनीतिक अधिकार प्राप्त करनेकी योग्यता सिद्ध हो जाती है।
इसके अलावा आप लिखते हैं कि "सभ्यता और शिक्षामें भारतीय दक्षिण आफ्रिकाके वतनियोंसे बढ़े-चढ़े हैं, इस दृष्टिसे वे अपने लिए सब अधिकार माँगते हैं।" इसके उत्तरमें हम आदरपूर्वक यह बता चाहते हैं कि हम इस प्रकारके अधिकार माँगनेसे खुश नहीं हैं। और मेरी रायमें जहाँतक सभ्य देशोंमें बुद्धिमान लोगों द्वारा अपने अधिकारोंका उपभोग करनेकी बात है, उनके मार्गमें सूक्ष्म भेदोंसे बाधा नहीं पड़नी चाहिए।

वाइसरॉयको चिट्ठी[२]

इसके अलावा वाइसरॉयको एक विशेष पत्र लिखा गया है। उसमें मांग की गई है। कि यदि हमारे व्यापारिक अधिकारकी रक्षा नहीं की जानी है तो गिरमिटके अधीन जानेवाले मजदूरोंको रोक दिया जाये।

मुलाकातें

ये लोग सर फ्रेड्रिक लेलीसे[३] भी मिले जो पहले सूरतकी तरफ रहे हैं, लेली साहबने सारी बातें सुनीं। श्री बॉटमलीसे और कारपोरेशन बैंकके श्री क्लार्कसे भी मिलते रहते हैं।

  1. यह २७-८-१९०९ के टाइम्समें प्रकाशित हुआ था।
  2. देखिए परिशिष्ठ २१ ।
  3. भूतपूर्व ब्रिटिश एजेंट, जो पोरबन्दर राज्यकी व्यवस्था करते थे; देखिए खण्ड १, पृष्ठ ७ और २१-२२।