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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे कर्नल सीलीसे एक बार मिल चुके हैं। अब फिर मिलनेवाले हैं। लॉर्ड मॉलेने पहली सितम्बरको मिलना तय किया है। श्री गुप्त और नवाब साहब बेलग्नामी आदिसे मुलाकात फिर हुई है। इसके अलावा आगाखाँसे उनका पत्र-व्यवहार चल रहा है। सर मंच रजीसे समय-समयपर भेंट होती रहती है। उनकी मददका पार नहीं है।

पोलकका काम

श्री पोलकका काम भारतमें जोरसे चलता दिखाई देता है। उनके पाससे अखबारोंकी कतरनें आई हैं, जिनसे प्रकट होता है कि उन्होंने एक ही सप्ताह में बहुत बड़ा काम किया है। गुजराती और अंग्रेजीके सभी अखबारोंमें खबरें दिखाई देती हैं। वे बम्बईमें बहुत-से लोगोंको पत्र लिख चुके हैं। ३१ तारीखको हुई सार्वजनिक सभाका भी तार आया है। अब क्या होता है, यह देखना है। उनके पाससे यहाँ निजी तार आते रहते हैं। इसलिए पूरी जानकारी रहती है।

सर मंचरजीकी मान्यता है कि भारतमें चन्दा करके ट्रान्सवालको पैसेकी सहायता दी जानी चाहिए। इस सम्बन्धमें श्री पोलकको तार[१] दिया गया है। अब सभामें जो कुछ हो जाये सो ठीक है। चन्देकी इस हलचलका लोगोंपर अच्छा असर पड़ेगा और इससे भारतकी सच्ची सहानुभूति प्रकट होगी।

"इंडियन सोशियॉलॉजिस्ट"

इस अखबारका मूल मुद्रक जेलमें चला गया है। फिर भी यह अखबार छप रहा है। नया मुद्रक भी गिरफ्तार कर लिया गया है। नये मुद्रकने पत्र सम्बन्धी स्वतन्त्रताकी रक्षाके लिए ही निर्भय होकर यह जोखिम अपने ऊपर ली है। वह कहता है कि उसके और श्री श्यामजीके मतमें बिलकुल समानता नहीं है। उसने तो केवल पत्र सम्बन्धी स्वतन्त्रता की रक्षाके लिए यह कार्य अपने हाथमें लिया है। हम इससे इतनी सीख तो ले ही सकते हैं कि जिस व्यक्तिने इस तरह जिम्मेदारी उठाई है वह गोरा है। जब उसने खुद आगे बढ़कर यह जोखिम मोल ली है तब यदि ट्रान्सवालके भारतीय अपने देशकी इज्जतकी खातिर लड़ाई चलायें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं मानी जायेगी।

जोज़ेफ रायप्पन

श्री जोज़ेफ रायप्पन, जो बहुत दिन पहले बैरिस्टर हो चुके हैं, रुपयेकी तंगीसे वापस नहीं लौट पा रहे थे। उनके लिए ट्रान्सवालमें चन्दा भी जमा किया गया था। अब वे "टींटेजन कैसिल " जहाजसे रवाना हो रहे हैं। उनका विचार देशसेवाके लिए गरीबीका जीवन बितानेका है। मेरी कामना है कि उनका यह निश्चय पक्का बना रहे। मुझसे उन्होंने साफ-साफ कहा है कि आवश्यकता जान पड़ेगी तो वे ट्रान्सवालमें जेल भी जायेंगे।

बहादुर औरतें

लन्दनकी भाँति लिवरपूलमें भी सात स्त्रियाँ मताधिकारके सम्बन्धमें गिरफ्तार हुई, और वहाँ उन्होंने अनशन किया। उन्होंने छः दिन तक कुछ भी नहीं खाया। इसलिए उनको कैदकी सजा पूरी होनेसे पहले छोड़ दिया गया है। मैं यह बतानेके लिए यह नहीं लिख रहा

  1. देखिए "तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३६६