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पत्र: श्रीमती काशी गांधीको

हूँ, और हमें ऐसा समझना भी नहीं चाहिए, कि जो स्त्रियाँ ऐसा करती हैं उनका हमें हर मामले अनुकरण करना चाहिए। उद्देश्य केवल यह समझाना है कि वे कष्ट-सहनमें कोई कमी नहीं रखतीं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-९-१९०९

२३३. पत्र: श्रीमतो काशी गांधीको

लन्दन,
अगस्त २८, १९०९
एक बजे रात

चि॰ काशी,[१]

देर इतनी हो गई है, फिर भी आज लिखे बिना काम नहीं चलेगा। हर हफ्ते तुम्हारी और सन्तोककी[२] याद कर लेता हूँ और पत्र नहीं लिखता। काम बहुत नहीं है फिर भी किसी-न-किसी काममें उलझा ही रहता हूँ।

तुम्हारी गोदमें बेटी आई है, इसके बारेमें मैं क्या लिखूँ? अगर कहूँ, अच्छा हुआ कि आई, तो यह झूठ कहलायेगा। अगर दिलगीरी बताऊँ तो यह हिंसा होगी। अपने आजके विचारोंके अनुसार मुझे तटस्थ रहना चाहिए। इसके लिए गीताजीमें जिसे समचित्तावस्था कहा है, उसकी जरूरत है। वह तो अत्यन्त दुर्लभ है। फिर भी प्रयास मेरा उसी दिशामें है। इस बीचमें इतना ही कहता हूँ और यही चाहता हूँ कि तुम सच्चे रूपमें इन्द्रियोंका दमन करना सीखो। मुझे बहुत अनुभव हो रहा है। जितना अधिक देखता हूँ, मेरे विचार उतने अधिक दृढ़ होते जाते हैं। उन्हें बदलनेका कारण दिखाई नहीं देता। संतोकको अलगसे चिट्ठी नहीं लिखूँगा। यह तुम दोनोंके लिए है।

मैंने तो तुम्हें पत्र नहीं लिखा, किन्तु तुमने क्यों नहीं लिखा? यदि मनमें यह सवाल करनेपर कोई कारण न मिले तो पश्चात्ताप करना, क्योंकि मैं तुम सबके पत्रोंका भूखा हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

प्रभुदास गांधीकी पुस्तक 'जीवननुं परोढ' में प्रकाशित, गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती पत्रकी फोटो-नकलसे।

 
  1. छगनलाल गांधीकी पत्नी।
  2. मगनलाल गांधीकी पत्नी।