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२४४. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

[लन्दन]
सितम्बर ३, १९०९

प्रिय हेनरी,

आपकी चिट्ठी और कतरनें मिलीं। आप जो कार्य कर रहे हैं वह अत्यन्त प्रशंसनीय है। मुझे हर्ष है कि आपको सब ओरसे बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त हो रहा है और श्री जहाँगीर पेटिट आपके साथ इतना अच्छा व्यवहार कर रहे हैं।[१]

समाचारपत्रोंसे मालूम हुआ कि आपने उस तारको प्रकाशित कर दिया है जो मैंने अधिनियमको रद कर देनेके प्रस्तावके सम्बन्धमें आपको भेजा था।[२] मुझे आश्चर्य हुआ। मेरा विश्वास था, आप यह समझ जायेंगे कि यह बातचीत बिलकुल खानगी है, और इस जानकारीको प्रकाशित नहीं की जा सकती। लॉर्ड ऍम्टहिल इस मामले में बहुत सख्त रहे हैं। सौभाग्यसे इसका कोई दुष्परिणाम नहीं हुआ। फिर भी, सावधानीके लिए मैंने अपने पिछले तारमें[३] आपसे कहा है कि आप यहाँसे भेजे जानेवाले किसी भी तारको प्रकाशित न करें।

शेरिफकी सभाका स्थगित किया जाना एक लज्जाजनक बात है। इसके सम्बन्धमें 'टाइम्स' में एक तार छपा था। मेरा खयाल है, आप 'इंडिया' पढ़ते ही रहते हैं। आप देखेंगे कि यह तार उसमें उद्धृत किया गया है। सर हेनरी कॉटन और श्री ओ'ग्रैंडी इस सम्बन्धमें प्रश्न पूछनेवाले हैं। प्रेसिडेंसी एसोसिएशन कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिको इस बारेमें एक निजी तार भेज देता तो अच्छा होता। हमारे लिए कोई कारगर कदम उठाना जरा मुश्किल है। बम्बई सरकारके कार्यका विरोध पहले बम्बईको करना चाहिए, हमें नहीं। फिर भी जो-कुछ सम्भव था, वह किया गया है। अब मैं किसी भी समय इस सम्बन्धमें आपका तार पानेकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि शेरिफके सहयोगके बिना सार्वजनिक सभा किस तारीखको की जा रही है।

श्री हाजी हबीब चाहते हैं कि आप उनके भाई श्री हाजी मुहम्मदसे, जो इस समय पोरबन्दरमें हैं, अपने काममें सहयोग माँगें। उनका कहना है कि यदि आप उनसे आग्रह करेंगे तो वे सहर्ष आपका हाथ बँटायेंगे। कृपया उनसे पत्र-व्यवहार करें। श्री उमर उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। मैं इस मामलेमें शायद तार भी दूँ।

लॉर्ड ऍम्टहिलके साथ जो पत्र-व्यवहार हुआ है, उसकी प्रतिलिपिसे आप देखेंगे कि अब किसी स्वीकार करने योग्य समझौतेकी सम्भावना नहीं है। साउदैम्टनसे जहाजमें रवाना होनेसे पहले जनरल स्मट्सने रायटरके संवाददाताको जो वक्तव्य दिया था, उसकी कतरन

  1. अपने अगस्त १४ के पत्र में पोलकने उन सब मुलाकातोंका तारीखवार ब्योरा दिया था जो बम्बईके प्रमुख व्यक्तियोंसे उन्होंने की थीं तथा उनकी सहानुभूति प्राप्त की थी।
  2. देखिए "तार : एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३५०।
  3. देखिए "तार: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ३७९।