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२४५. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१०]

[सितम्बर ३, १९०९ के बाद]

अभी समझौतेकी खबर नहीं दे सकता, यह लिखते-लिखते मैं थक गया हूँ। लेकिन फिर भी यही लिखना पड़ता है। मैं यह भी जानता हूँ कि जो पूरे सत्याग्रही हैं वे तो ऐसी खबर पढ़कर उकतायेंगे नहीं, क्योंकि समझौतेके होने-न-होनेसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। वे तो विजयी हैं ही।

फिर भी इस बार तो कुछ ज्यादा खबरें दे सकता हूँ। ऐसी खबर मिली है कि जनरल स्मट्स कानूनको रद कर देंगे। किन्तु जहाँतक शिक्षित लोगोंका सवाल है स्मट्स उन्हें रियायतके तौरपर एक निश्चित संख्यामें स्थायी निवासके परवाने देंगे। उनको वही अधिकार मिलेंगे जो पंजीयन करा लेनेवाले (रजिस्टर्ड) भारतीयोंको। लेकिन मुझे इसमें कोई लाभ दिखाई नहीं देता। "मर गया" के बजाय "परलोक गया" कहा जायेगा, किन्तु मरा तो सही। हमें जिन्दोंसे टक्कर लेनी है। इसका अर्थ यह है कि हमें अभी लड़ना ही होगा। फिर भी यह खबर निश्चित नहीं है। ठीक क्या है यह थोड़े दिनोंमें पता चल जायेगा। मुझे ऐसा नहीं लगता कि इस बारके समझौतेमें कोई बाकायदा बातचीत होगी। जो-कुछ हमने माँगा है वह समय पूरा होनेपर मिलकर रहेगा और तभी हम अपने हथियार दीवारपर टाँग सकेंगे।

अब यदि ऊपर लिखे अनुसार कानून रद हो जाये और छ: भारतीयोंको स्थायी निवासके परवाने मिल जायें तो लड़ाई ज्यादा जमेगी। उसका सच्चा स्वरूप ज्यादा समझमें आयेगा। तब तो सभी समझ जायेंगे कि हमारी लड़ाई [शिक्षित भारतीयोंकी] किसी खास संख्याके लिए नहीं है, बल्कि भारतकी प्रतिष्ठाके लिए है। कानूनके अनुसार हमें यूरोपीयोंके बराबर अधिकार हो, फिर भले ही व्यवहारमें यहाँ एक भी शिक्षित भारतीय न आये। हम यह सहन कर सकते हैं। किन्तु यदि कानूनमें [हमारी जातिपर] कालिख लगा दी जाये और बादमें भले ही पचास भारतीयोंको अनुमतिपत्र (परमिट) दे दिये जायें तो वे हमारे कामके नहीं हैं। लड़ाई शिक्षितोंकी या बहुशिक्षितोंकी नहीं, बल्कि भारतकी प्रतिष्ठाकी, हमारे सम्मानकी और हमारे प्रतिज्ञा-पालनकी है। उसके लिए जितना दुःख उठायें उतना सुख है। इस लड़ाईमें भाग लेनेवाला सच्चा सत्याग्रही— आत्मबली—है। मैं ऐसी सुन्दर और भव्य लड़ाई में प्रत्येक भारतीयको भाग लेते देखना चाहता हूँ।

पाठक देखते होंगे कि इस शिष्टमण्डलका सारा काम पर्दे के पीछे हुआ है। फिर भी उनको यह समझ लेना चाहिए कि जो-कुछ करना उचित है उसमें कोई कमी नहीं रहती। ब्रिटिश सरकारसे काम कराना हमारा लक्ष्य है। जबतक यह काम हो रहा है तबतक यहाँ (इंग्लैंडमें) करनेके लिए दूसरा काम नहीं है। दूसरा कोई काम करने लगेंगे तो समूची लड़ाईको धक्का पहुँचेगा।

जब ब्रिटिश सरकार इनकार कर देगी तब हमें सार्वजनिक कार्रवाई करनी पड़ेगी। बातचीतमें आठ हफ्ते निकल गये हैं। अब भी कुछ वक्त लगेगा। उसके बाद जरूरत पड़नेपर

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