पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सार्वजनिक कार्रवाई की जायेगी। इसमें वक्त लगता है। जितना खयाल था उससे ज्यादा वक्त लग जायेगा, लेकिन इससे छुटकारा भी दिखाई नहीं देता। इसके अलावा जब ब्रिटिश सरकार हमको सहायता देनेका प्रयत्न करनेके बाद अपने हाथ समेट लेगी, तब यहाँका काम बहुत मुश्किल हो जायेगा। लड़ाई उग्र, तेज और कठिन हो जायेगी। उसे सहन कर लेनेपर ही हम उसे, जिसे श्री दाउद मुहम्मदने हाथीका नाम दिया है, मार सकेंगे।

मैं ज्यों-ज्यों देखता हूँ त्यों-त्यों मुझे लगता है कि यदि शिष्टमण्डल या प्रार्थनापत्र आदिके पीछे सच्चा बल न हो तो सब निकम्मे हैं। लोगोंसे भेंट करनेकी अपेक्षा जेलमें रहना ज्यादा अच्छा है, यह अनुभव हो रहा है। मीराबाईने गाया है:

 
मिश्री और गन्नेका स्वाद छोड़कर तू कड़वा नीम मत घोल,
सूरज और चन्द्रमाका प्रकाश छोड़कर तू जुगनूसे प्रीति मत जोड़।
[१]

यह भक्त नारी कह गई है कि प्रभु-भक्तिमें—खुदाकी बन्दगीमें—जिसका मन लीन हो गया है उसको दूसरी चीजें नीमके रसकी तरह कड़वी और जुगनूके प्रकाशकी तरह निस्तेज लगती हैं। उसी प्रकार जिसने सत्याग्रह—आत्मबल—का प्रयोग किया है और जिसपर उसका पक्का रंग चढ़ा है, उसको शिष्टमण्डल और प्रार्थनापत्र नीरस लगते हैं। इस स्थिति में पाठकोंको पूछना ही चाहिए कि तब आप जेलका सुख छोड़कर शिष्टमण्डलमें क्यों गये? मैं पहले ही अपने पत्रमें[२] कह चुका हूँ कि शिष्टमण्डल भारतीय समाजकी कमजोरीका सूचक है। कमजोर लोगोंकी खातिर कुछ हद तक इसका आना कर्तव्य हो गया था। किन्तु मैं अनुभवके आधारपर कहता हूँ कि भारतीय समाज मेरा और दूसरे बहुतसे भारतीयोंका सदुपयोग, हमको जेलमें रखकर कर सकता है। सत्याग्रही जो जेलरूपी आवेदनपत्र देते हैं उससे ज्यादा चतुराईसे लिखा आवेदनपत्र लोग नहीं दे सकते जो शिष्टमण्डल ले जाते हैं। उस प्रकारके कार्योपर से अब लोगोंका विश्वास उठ गया है। मैं तो निर्भय होकर कह सकता हूँ कि यदि यहाँ हमारी कोई सुनवाई होती है तो इसी कारण कि हम सत्याग्रही हैं और हमने कष्ट-सहनको अपना असली आधार माना है।

मेरे विचार तो ऐसे हैं, फिर भी मेरे मनमें यह खयाल आता है कि यदि समझौता न हो तो हम भारत जायें और वहाँ जो-कुछ करना उचित है वह करें; फिर इंग्लैंड लौट आयें और यहाँ जो-कुछ विशेष करने योग्य हो उसको निबटाकर ट्रान्सवाल लौट जायें। इस वक्त तो ये केवल शेखचिल्लीके-से मन्सूबे हैं। अभी तो यही नहीं कहा जा सकता कि समझौता होगा या नहीं। फिर भी ये विचार समाजको मालूम हो जायें तो अच्छा है, ऐसा खयाल करके इनको यहाँ दे रहा हूँ ।

ऐसा दिखाई देता है कि श्री पोलक बम्बईमें बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। वे बहुतसे लोगोंसे मिले हैं, और सभीने उनको सहायताका वचन दिया है। वे बम्बईके प्रेसीडेन्सी असोसिएशन और अंजुमन इस्लामकी बैठकोंमें हो आये हैं। बम्बईके लखपति श्री जहाँगीर पेटिटने

  1. मूल पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
    शाकर सेलहीनो स्वाद तजीने, कड़वी लीम्बड़ो घोल माँ रे।
    सूरज चन्द्रानुं तेज तजीने, आगीया संगाते प्रीत जोड़ माँ रे।
  2. देखिए "शिष्टमण्डलकी यात्रा [१]", पृष्ठ २७०।