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शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१०]

उनको अपने यहाँ ठहराया है। वे उनकी खूब खातिर कर रहे हैं। और उन्होंने अपने खर्चेसे पुस्तिका छपानेका वचन दिया है। इसी प्रकार अंजुमन इस्लामने श्री पोलकका भाषण अंग्रेजी और उर्दूमें छपाकर प्रचारित करनेका वचन दिया है।

एक तारसे मालूम हुआ है कि बम्बईके शेरिफने पहली तारीखको एक बड़ी सभा बुलाई थी; किन्तु बम्बई सरकारने शेरिफको वह सभा न करनेकी अन्यायपूर्ण आज्ञा दी। अब फिर तार आया है कि बम्बई सरकारने अपनी भूलपर खेद प्रकट करके सभा करनेकी स्वीकृति दे दी है। यह सभा ११ सितम्बरको होगी।[१] इस पत्रके छपने तक तो सभाकी खबर मिल भी जायेगी। इसलिए मुझे सूझता नहीं कि क्या लिखूँ। सभा न करनेका कारण सरकारने यह बताया था कि चूँकि दक्षिण आफ्रिकी संघ (यूनियन) तो बन चुका है, इसलिए शेरिफ जैसे सरकारी अधिकारीको [विरोध व्यक्त करनेके लिए] सभा न बुलानी चाहिए। इसमें तो दूसरी भूल है। एक तो यह है कि संघके साथ ट्रान्सवालकी लड़ाईका कोई सम्बन्ध नहीं है। दूसरा यह है कि यदि शेरिफ सभा करे तो उससे सभामें सरकारका भाग लेना नहीं माना जायेगा। शेरिफ सभा बुलाता है तो केवल लोगोंकी मर्जीसे। वह उसमें भाग भी नहीं लेता।

स्मट्स साहब रवाना होनेसे पहले रायटरसे यह कहते गये कि भारतीयोंके लिए सन्तोषप्रद समझौता हो जायेगा। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि बहुत-से भारतीय लड़ते-लड़ते पस्तहिम्मत हो चुके हैं और संघर्ष में सिर्फ कुछ ही झगड़ालू लोग रह गये हैं। इस खबरसे मालूम होता है कि भारतीयोंके प्रश्नपर लॉर्ड क्रू से उनकी खूब बातचीत हुई है। किन्तु उन महानुभावका इरादा, जैसा मैं ऊपर बता चुका हूँ, हमारे साथ अधूरा समझौता करनेका है।

मैं तो भारतीय समाजका ध्यान उनके एक ही वाक्यकी ओर आकर्षित करता हूँ। वे कहते हैं कि "बहुत-से भारतीय तो [संघर्षसे] थक गये हैं।" इसमें सब आ जाता है। इससे जाना जा सकता है कि इतनी देर क्यों लगी और क्यों लग रही है। समझौता होना या न होना हमारी शक्तिपर निर्भर है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-१०-१९०९
 
  1. यह सभा १४ सितम्बरको हुई थी।