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पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

दौड़ रही हैं, ऊपर टेलिग्राफके तार लटक रहे हैं, और रास्तोंमें गाड़ियोंकी आवाज कानोंको बहरा किये दे रही है। अब वायुमें विमान चलने लगेंगे तब तो लोगोंको मरा ही समझिए। मैं स्वयं इस देशको देखकर पाश्चात्य सभ्यतासे ऊब गया हूँ। सड़कोंपर जो लोग मिलते हैं वे आधे पागल जैसे दिखाई देते हैं। वे अपना दिन राग-रंगोंमें या रोटी कमानेमें बिताते हैं और उसके बाद रातको थकावटसे चूर होकर सो जाते हैं। मैं नहीं समझ सकता कि ऐसी हालतमें वे ईश्वरका भजन कब कर सकते हैं। डॉक्टर कुक उत्तरी ध्रुवपर हो भी आये हों तो इससे लाभ क्या हुआ? इससे लोगोंके कष्टोंमें रत्ती-भरकी कमी नहीं होगी। पाश्चात्य सभ्यता अभी पुरानी नहीं हुई है। इतने दिनोंमें ही उसकी हालत ऐसी दिखाई देने लगी है कि या तो सभ्यताके इन साधनोंको दूर कर देना चाहिए या लोग पतंगोंकी भाँति मर मिटेंगे। इस समय भी यह देखा जा सकता है कि आत्महत्याओंकी संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। लोगोंका किसी खास कामसे या पढ़नेके लिए इंग्लैंड आना कुछ कारणोंसे उचित है। किन्तु सामान्यतः मेरा निश्चित विचार है कि इस देशमें आना और रहना बिलकुल ठीक नहीं है। इस सम्बन्धमें अधिक विचार फिर करेंगे।

जोज़ेफ रायप्पन

मैं यह खबर दे चुका हूँ कि श्री जोज़ेफ रायप्पन यहाँसे शनिवारको रवाना हो गये हैं।[१] मुझे ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं कि उनके सामने जेल जानेके सिवा कोई रास्ता नहीं है। मुझे आशा है कि वे जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-१०-१९०९

२४७. पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

[ लन्दन ]
सितम्बर ६, १९०९

महोदय,

लॉर्ड ऍम्टहिलने श्री हाजी हबीबको और मुझे सूचित किया है कि लॉर्ड शीघ्र ही हमें या तो खुद भेंटके लिए बुलायेंगे या किसी व्यक्तिको नियुक्त करेंगे जिससे हम मिल सकें और ट्रान्सवालके भारतीयोंके प्रश्नपर बातचीत कर सकें।[२]

मैं जानता हूँ कि लॉर्ड महोदय अनेक राजकीय कार्योमें बहुत व्यस्त हैं। तथापि मैं आपको स्मरण दिलाना चाहूँगा कि श्री हाजी हबीब और मैं राजधानीमें आठ सप्ताहसे अधिक समयसे हैं, और जिन लोगोंने हमें यहाँ भेजा है वे हमारे कार्यका परिणाम जाननेके लिए हमपर भारी दबाव डाल रहे हैं। मुझे यह उल्लेख करनेकी आवश्यकता नहीं है कि हम जानबूझकर समस्त सार्वजनिक कार्रवाइयाँ करनेसे बचते रहे हैं, ताकि उस बातचीतको हानि न पहुँचे, जो लॉर्ड महोदय संघर्षको समाप्त करनेकी दृष्टिसे ट्रान्सवालके मन्त्रियोंके साथ कृपापूर्वक चला रहे हैं।

  1. देखिए "लन्दन", पृष्ठ ३७२।
  2. गांधीजीको लिखे गये लॉर्ड ऍम्टहिलके ५ सितम्बर के पत्र में यह सूचना दी गई थी।