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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि ये कतरनें नीमेके[१] पास पहुँच जायें तो मैं अच्छी तरह कल्पना कर सकता हूँ कि वे हमें बहुत बड़ी हानि पहुँचा सकते हैं। मुझे आशा है, आपका खयाल यह नहीं है कि इस अधिनियमके रद करनेके बारेमें कोई समझौता हो गया है। मेरा इरादा अपने तारसे कोई ऐसा खयाल पैदा करनेका नहीं था। सम्भावनाएँ हैं कि अनाक्रामक प्रतिरोध बन्द करनेका सौदा किये बिना कुछ भी नहीं दिया जायेगा और फिर भी आपके बम्बईके समाचारपत्रों में दिये गये लेखोंसे यह आभास मिलता है कि आपने अधिनियमकी मंसूखी निश्चित मान ली है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि जो सभा अब होगी उसमें आप इस समूचे प्रश्नका विवेचन कैसे करेंगे। मुझे आशा है, मेरे पत्रोंसे आपको सारी स्थिति स्पष्ट हो गई होगी। यदि उनसे स्थिति स्पष्ट न हुई हो तो मैं अपने-आपको कभी माफ न कर सकूँगा। अगर तीन वर्ष पहले कोई चीज इस प्रकार असमय प्रकाशित हो जाती और जहाँ जीत नहीं हुई वहाँ हमारी जीत बताई जाती तो शायद मैं अपने बाल नोंच डालता; क्योंकि तब अनाक्रामक प्रतिरोध तो था नहीं, जिसका हम आश्रय लेते। वर्तमान स्थितिमें, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ मैंने इस चीजके प्रकाशित होनेपर गम्भीरतासे विचार तक नहीं किया है और न मुझे इससे कोई चिन्ता हुई है; क्योंकि मैं जानता हूँ कि हम जिस चीजके लिए लड़ रहे हैं वह जब कभी [हमें प्राप्त होगी][२]तब सत्याग्रह के कारण ही प्राप्त होगी।...[३] मैं इस तारके प्रकाशनका उल्लेख इसलिए करता हूँ कि आप भविष्यमें सावधान रहें और यह जान लें कि हमारे मित्र (आप जानते हैं, मेरा तात्पर्य किनसे है) क्या कह रहे हैं।

सार्वजनिक सभाको रोककर बम्बई सरकारने कैसी मूर्खतापूर्ण भूल की है। यह घटना कैसे और क्यों घटित हुई, इस सम्बन्धमें मैं विस्तृत वर्णनकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। यह बड़े दुःखकी बात है कि सर फीरोजशाह अब भी आपकी प्रगतिमें बाधा डाल रहे हैं।[४] फिर भी मैं इस बातकी पूरी आशा कर रहा हूँ कि आप बम्बईके कामकी समाप्तिके साथ-साथ उन्हें रास्तेपर ले आयेंगे।

मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ कि जो वक्तव्य[५] मैंने भेजा है वह बम्बईके लिए बिलकुल काम न देगा। वह काम दे सकता है यह मैंने कभी सोचा भी नहीं। भारतके लिए उससे बहुत अधिक मँजे हुए और विस्तृत वक्तव्यकी आवश्यकता है।

यदि आप श्री पेटिट और दूसरे लोगोंको दोनों शिष्टमण्डलोंका व्यय देनेके लिए राजी कर सकें तो यह एक बड़ा काम होगा और इससे वह कठिनाई अपने-आप दूर हो जायेगी जिसे दूर करनेका प्रयत्न हम गत १२ महीनेसे कर रहे हैं।

यह पत्र लिखवाने के समय तक लॉर्ड क्रू ने भेंटके लिए कोई तारीख नहीं भेजी है। मैं नहीं जानता कि इस देरका क्या अर्थ है।

  1. एल॰ ई॰ नीमे, एशियाटिक डेंजर इन द कॉलोनीज़के लेखक। इसका उत्तर इंडियन ओपिनियन के सम्पादकने एक पुस्तिका लिख कर दिया था।
  2. यहाँ मूलमें कागज कट-फट गया है। ये शब्द अनुमानसे पूरे किये गये हैं।
  3. यहाँ कुछ शब्द मिटे हुए हैं।
  4. पोलकने अपने २१ अगस्तके पत्रमें लिखा था "मैं सार्वजनिक सभापर जोर दे रहा हूँ, पर सर फीरोजशाह मेहता बाधक बन रहे हैं। वे देरी करानेके सिवा कुछ नहीं करते।"
  5. देखिए "ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामडेका विवरण" पृष्ठ २८७-३००।