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२६०. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
सितम्बर १३, १९०९

लॉर्ड महोदय,

मैं आपके इसी ११ तारीखके पत्रके[१] लिए आपका अत्यन्त आभारी हूँ। जो पत्र[२] मैंने लॉर्ड मॉर्लेको भेजा था वह जैसा आपने सुझाया था ठीक वैसा ही था, और अब मेरी समझमें आता है कि शायद मैं अधिक अच्छा पत्र लिख सकता था। मुझे यह तय करनेमें सदा कठिनाई हुई है कि मैं आपकी दी हुई जानकारीके किस भागका उपयोग करूँ। मैं लॉर्ड मॉर्लेको भेजे अपने पहले पत्रकी दफ्तरी प्रति और अब जो पत्र लिखना ठीक जँचता है उसके मसविदेकी नकल आपको भेज रहा हूँ।

लॉर्ड क्रू ने अब मुझे भेंटका समय दे दिया है। उन्होंने यही १६ तारीख निश्चित की है। भेंटका दिन वही है जो प्रिटोरियामें जनरल स्मटस्के पहुँचनेका दिन है। मैं नहीं जानता कि ऐसा संयोगसे हो गया है या जान-बूझकर किया गया है।

आपका, आदि,

[सहपत्र]

लॉर्ड मॉर्लेको भेजे गये पत्रका मसविदा[३]

महोदय,

अपने इसी छः तारीख के पत्रको, जिसमें लॉर्ड महोदयसे भेंटका प्रस्ताव था, दुबारा पढ़नेपर मुझे मालूम होता है कि मैंने स्थितिको इतना स्पष्ट नहीं किया, जिससे लॉर्ड महोदय से भेंटका प्रस्ताव उचित ठहर सकता।

लॉर्ड ऍम्टहिल, जिन्होंने ट्रान्सवालके भारतीयोंके कष्टोंमें गहरी दिलचस्पी ली है और हमें बहुत अधिक सहायता दी है, मेरे साथीको और मुझे सूचित करते हैं कि जनरल स्मट्स अब सीमित संख्या में शिक्षित और सुसंस्कृत भारतीयोंके अधिवासके स्थायी प्रमाणपत्र देनेके लिए तो तैयार हैं, लेकिन सीमित संख्यामें ही क्यों न हो, वे इन भारतीयोंके ट्रान्सवालमें प्रवासके अधिकारको मान्य नहीं करेंगे। भारतीयोंका संघर्ष अधिकारके प्रश्नपर ही आरम्भ किया गया है। यद्यपि ट्रान्सवालके अधिवासी भारतीयोंको भारतसे शिक्षा सम्बन्धी योग्यता-प्राप्त नये प्रवासी बुलानेकी आवश्यकता है, फिर भी ब्रिटिश भारतीय समाजकी सम्मतिमें, इस प्रकारकी सुविधा इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश भारतीयोंका सामान्य प्रवासी-परीक्षाके अन्तर्गत ट्रान्सवालमें आनेका सैद्धान्तिक अधिकार। यदि एक अलग एशियाई अधिनियम, अर्थात् १९०८ का अधिनियम ३६, पास न किया जाता तो १९०७ के अधिनियम २

  1. देखिए परिशिष्ट २३
  2. ६ सितम्बरको लिखा गया यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  3. यह मसविदा कुछ परिवर्तन करनेके बाद १६ सितम्बरको भेजा गया था; देखिए "पत्र: लॉर्ड मॉर्लेके निजी सचिवको", पृष्ठ ४०६-०७।