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पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

का मंसूखा ही किया जाना ऊपर बताये गये सैद्धान्तिक अधिकारको रक्षा करने और इस प्रकार भारतकी प्रतिष्ठाको बचानेके लिए काफी होता; लेकिन आज १९०८ के अधिनियम ३६ के होनेसे शिक्षित भारतीयोंके प्रश्नका पृथक उल्लेख करना और ट्रान्सवालके वर्तमान कानूनमें थोड़ा परिवर्तन करना आवश्यक हो गया है। अगर लॉर्ड महोदयको समय हो तो मैंने उनसे भेंटका प्रस्ताव यह बताने के लिए किया है कि जनरल स्मट्स जो-कुछ देनेके लिए तैयार हैं उसमें और ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंने जो कुछ माँगा है और अब भी मांग रहे हैं, उसमें एक आधारभूत अन्तर है।

मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि ट्रान्सवालके प्रतिनिधि श्री पोलककी उपस्थितिसे बम्बईके लोगोंमें संघर्षके प्रति जो भारी दिलचस्पी पैदा हो गई है, इसका लॉर्ड मॉर्लेको पता होगा। मुझे प्रति सप्ताह अखबारोंकी जो कतरनें मिलती हैं, उनसे प्रकट होता है कि सभी प्रकारके विचारोंके प्रतिनिधि-अखबार इस प्रश्नके लिए काफी स्थान दे रहे हैं। श्री पोलकने प्रमुख भारतीयों और आंग्ल भारतीयोंसे भेंट की है और उन लोगोंसे उन्हें बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला है। बम्बईकी इन गतिविधियोंसे प्रकट होता है कि उपनिवेशीय कानूनमें पहली बार भारतीय निर्योग्यताको स्थान देकर भारतका जो अपमान किया जा रहा है उससे उसे बहुत गहरी चोट लगी है और यह बिलकुल उचित भी है। और ट्रान्सवालमें एक साम्राज्यीय आदर्शकी प्राप्तिके लिए सैकड़ों ब्रिटिश भारतीय जो कष्ट उठा रहे हैं, उससे भी भारतको बहुत दुःख हुआ है।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०६६-७) से।

२६१. पत्र: लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको

[लन्दन]
सितम्बर १४, १९०९

महोदय,

आपके ११ तारीखके पत्रके सम्बन्ध में निवेदन है कि श्री हाजी हबीब और मैं इसी १६ तारीखको दोपहर बाद ३-१५ पर लॉर्ड महोदयकी सेवामें उपस्थित होंगे।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५०७२) से।