पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२६२. पत्र: लॉर्ड मॉर्लेके निजी सचिवको

[लन्दन]
सितम्बर १६, १९०९

महोदय,

अपने इसी ६ तारीखके पत्रको[१], जिसमें लॉर्ड महोदयसे भेंटका प्रस्ताव था, दुबारा पढ़नेपर मुझे मालूम होता है कि मैंने स्थिति इतनी स्पष्ट नहीं रखी है कि लॉर्ड महोदयसे भेंटका प्रस्ताव उचित ठहर सके।

यद्यपि मेरे साथीको और मुझे लॉर्ड क्रू और ट्रान्सवालके मन्त्रियोंके बीच हुई बातचीतके परिणामोंकी सरकारी तौरपर कोई जानकारी नहीं मिली है, फिर भी हमारे पास यह अफवाह पहुँची है कि रियायतें दी जायेंगी; लेकिन वे हमारे उस एकमात्र लक्ष्यसे कम होंगी जिसके लिए हमने संघर्ष किया है और कष्ट सहे हैं। यह उद्देश्य है प्रवासके "अधिकार" की बहाली। हम इसके लिए तैयार हैं कि उपनिवेश-सरकार जिस सीमा तक आवश्यक या वांछनीय समझे उस सीमा तक यह अधिकार व्यवहारमें सीमित रखा जाये; लेकिन अगर हम सिद्धान्तके रूपमें इस अधिकारसे वंचित किया जाना मंजूर कर लेते हैं तो हमारी प्रतिज्ञाएँ झूठी हो जाती हैं, और हम भारतकी अप्रतिष्ठाके भागी बनते हैं। इसलिए हम ऐसा नहीं कर सकते। भारतीयोंने साम्राज्यके प्रत्येक भागमें प्रवेशके सैद्धान्तिक अधिकारका उपयोग किया है और अब भी कर रहे हैं, यद्यपि कुछ उपनिवेशोंमें व्यवहारमें यह अधिकार सीमित है। वे केवल ट्रान्सवालमें, और वह भी—पिछले दो वर्षोमें ही, इस अधिकारसे वंचित किये गये हैं। लॉर्ड मॉर्ले संसार-भरमें ब्रिटिश उदारवादके प्रतीक माने जाते हैं, अतः हम यह विश्वास नहीं कर सकते कि यदि उन्हें इस चौंका देनेवाले तथ्यका प्रमाण मिल जाता तो वे ट्रान्सवाल सरकार द्वारा अपनाई गई इतनी प्रतिक्रियावादी और अनुदार नीतिको नज़र-अन्दाज़ कर देते। हम खुद हाजिर होकर यही प्रमाण प्रस्तुत करनेकी अनुमति माँगते हैं, क्योंकि हमें इसमें सन्देह है कि महामहिमकी सरकारने स्थितिको ठीक-ठीक समझ लिया है। यदि उसने समझ लिया होता तो वह निश्चय ही साम्राज्यमें "रंग सम्बन्धी प्रतिबन्ध" की पहली बार जानबूझकर की जानेवाली इस स्थापनाको टालनेके लिए कदम उठाती।[२]

  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. यह अनुच्छेद लॉडे ऍम्टहिलने गांधीजी के १३ सितम्बरको भेजे गये मसविदेका दूसरा अनुच्छेद इटाकर उसकी जगइ रख दिया था। उन्होंने अपने १५ सितम्बरके पत्रमें गांधीजीको लिखा था: "यह ऊपरका अनुच्छेद ज्यादा कढ़ा है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप सरकारको नीतिके प्रतिक्रियावादी और अनुदार स्वरूपपर जोर दें। आपके मसविदेसे ऐसा पूरी तरह नहीं होता। आपने इस अधिकारसे वंचित किये जानेकी कार्रवाई के अभूतपूर्व स्वरूपका जो उल्लेख किया है, वह अन्तिम अनुच्छेद में पढ़कर दब गया है। वहाँ उसकी ओर निगाह नहीं भी जा सकती। मुलाकातके लिए और अगर फिर कोई पत्र लिखना पढ़े तो उसके लिए भी सारी तफसील तैयार रखें। इस वक्त तो आपको इतना ही करना है कि आप लॉर्ड मॉर्लेको उनकी सरकारके अत्यन्त अनुदार कदमकी बात बता दें और कह दें कि साम्राज्यकी नीतिको इतना भ्रष्ट अबतक अन्य किसी बातने नहीं किया था। अगर आपको इस चिट्ठीपर झिड़की मिळे तो बादमें आप उसे प्रकाशित करा सकते हैं, और दुनिया आपके कथनका समर्थन करनेवाले दूसरे प्रमाणोंसे खुद नतीजा निकालेगी।" देखिए अगला शीर्षक भी।