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पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको


मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि ट्रान्सवालके प्रतिनिधि श्री पोलककी उपस्थितिसे बम्बईके लोगोंमें जो भारी दिलचस्पी पैदा हो गई है, लॉर्ड मॉर्लेको उसका पता होगा। मुझे प्रति सप्ताह अखबारोंकी जो कतरनें मिलती हैं, उनसे प्रकट होता है कि सभी प्रकारके विचारोंके प्रतिनिधि अखबार इस प्रश्नको काफी स्थान दे रहे हैं। श्री पोलकने प्रमुख भारतीयों और आंग्ल भारतीयोंसे भेंट की है और उन लोगोंसे उन्हें बहुत अधिक प्रोत्साहन मिला है। बम्बईकी इन गतिविधियोंसे प्रकट होता है कि उपनिवेशीय कानूनमें पहली बार जातीय निर्योग्यताको स्थान देकर भारतका जो अपमान किया जा रहा है उससे उसे बहुत गहरी चोट लगी है और यह बिलकुल उचित भी है। और ट्रान्सवालमें एक साम्राज्यीय आदर्शकी प्राप्तिके लिए सैकड़ों ब्रिटिश भारतीय जो कष्ट उठा रहे हैं, उससे भारतको बहुत दुःख हुआ है।[१]

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०७७) से।

२६३. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
सितम्बर १६, १९०९

लॉर्ड महोदय,

आपके इसी १५ तारीखके कृपापत्रके लिए आपको धन्यवाद। मैंने अब लॉर्ड मॉलेको साथकी प्रतिलिपिके[२] अनुसार पत्र लिख दिया है। मैंने बदले हुए अनुच्छेदके आरम्भमें केवल थोड़ा-सा शाब्दिक परिवर्तन किया है। "हम" के बजाय मैंने "मेरा साथी और मैं" रख दिया है। शेष ठीक श्रीमान्के मसविदे—जैसा ही रखा है।

लॉर्ड क्रू से हम आज मिल रहे हैं। मैं आपकी दी हुई कीमती सलाहको[३] ध्यानमें रखूँगा और आपको भेंटके परिणामकी सूचना दूँगा।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०७९) से।

  1. इस पत्रकी पहुँच देते हुए लॉर्ड मॉलेके निजी सचिवने १८ सितम्बरको लिखा था: "...आप लॉर्ड मॉलेके सामने जिस मुद्देपर जोर देना चाहते थे वह उनके लिए कोई नया नहीं है। यद्यपि सूक्ष्म और सामान्य आधारोंपर इस सम्बन्धमें उनकी सहानुभूति आपके साथ है, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसे उनके सामने अधिक स्पष्ट करनेसे कोई व्यावहारिक उद्देश्य सिद्ध होगा। इसलिए उन्हें खेद है कि वे आपको दूसरी मुलाकात नहीं दे सकते। लेकिन वे यह मानते हैं कि आपने अपने विचार उपनिवेश-मन्त्रीके सामने पूरी तरह रख दिये होंगे।"
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. लॉर्ड ऍम्टहिलने लिखा था: "मुझे आशा है कि जब आप लॉर्ड क्रू से मिलेंगे तो असली मुद्दे पर जैसा मैंने यहाँ सुझाया है वैसे ही जोर देंगे। यह सिद्ध करनेके लिए तैयार रहें कि सैद्धान्तिक अधिकार तो असलमें सभी जगह है; क्योंकि वे इसी मुद्देपर आपसे पूछताछ करेंगे। आप मेरा नाम वहीं ले जहाँ उसके बिना काम न चल सके।"