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२६४. लॉर्ड क्रू के साथ भेंटका सार[१]

[लन्दन,
सितम्बर १६, १९०९]

उपस्थित: लॉर्ड क्रू, हाजी हबीब और गांधी

लॉर्ड क्रू ने इन शब्दोंके साथ बातचीत आरम्भ की: मेरा खयाल है, लॉर्ड ऍम्टहिलका आपसे सम्पर्क रहा है और उन्होंने आपको सब-कुछ बता दिया है। मैंने आप लोगोंसे मिलनेको कहा था, ताकि मैं आपको यह बता दूँ कि बातचीतमें विलम्ब हो गया है, क्योंकि उपनिवेशके मन्त्रियोंको कई दूसरे काम करने थे। कर्नल सीली और मैं दोनों जनरल स्मट्ससे कई बार मिले। उनका रुख उचित था और वे समझौता करनेके लिए उत्सुक थे। वे कानूनको रद करना चाहते हैं, किन्तु लॉर्ड ऍम्टहिलके संशोधनको मंजूर करना नहीं चाहते। उन्होंने यह ज़रूर स्वीकार किया कि कुछ ब्रिटिश भारतीयोंको स्थायी अधिवास प्रमाणपत्र (पर्मनेंट रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट्स) दिये जाने चाहिए और कहा कि वे वर्तमान कानूनमें इस आशयका संशोधन करनेके लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे अवास्तविक समानता नहीं चाहते। जनरल स्मट्स सार रूपमें जो कुछ देनेको तैयार हैं उसे क्या आप स्वीकार नहीं कर सकते?

गांधी: मुझे भय है कि जनरल स्मट्स जो-कुछ देना चाहते हैं उससे ब्रिटिश भारतीय समाज सन्तुष्ट नहीं हो सकता। उसके बाद भी कानूनकी पुस्तकमें प्रजाति (रेस)—सम्बन्धी धब्बा रह ही जाता है।

लॉर्ड क्रू ने टोकते हुए कहा: मगर क्या आप यह नहीं मानते कि हास्यास्पद परीक्षाएँ लेकर प्रवेश निषेध करनेकी आस्ट्रेलियाकी-सी नीति इस प्रश्नको तय करनेके लिए असन्तोष जनक है?

गांधी: मैं मानता हूँ कि वह असन्तोषजनक है, लेकिन काल्पनिक समानता अपेक्षाकृत छोटी बुराई है। और क्या स्वयं ब्रिटिश संविधानकी नींव बहुत-से काल्पनिक आदर्शोपर रखी गई है? स्वयं मेरा पालन-पोषण भी इन्हीं परम्पराओंके बीच हुआ है। विद्यार्थी जीवनमें ही मैंने इस प्रकारके आदर्शोंका मूल्य पहचाना था। दरअसल, काफी सोच-विचारकर मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि इन कथित अवास्तविकताओंके लिए एक बहुत उचित आधार है, और यदि जनरल स्मट्स सचमुच समझौता करनेके लिए उत्सुक हैं, और ब्रिटिश झण्डेके नीचे रहना चाहते हैं तो वे जानबूझकर ब्रिटिश संविधानमें हस्तक्षेत क्यों करेंगे—विशेषतः तब, जब कि वे जो कुछ चाहते हैं, वह उस संविधानका उल्लंघन किये बिना प्राप्त किया जा सकता है? मैं श्रीमान्‌का ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि उपनिवेशका प्रवासी कानून ताजके अधीन उपनिवेशोंके उपयुक्त कानून नहीं है, वह जनरल स्मट्सका

  1. भेंटके बाद गांधीजीने स्वयं इसका सारांश लिखा; देखिए "पत्र: एच॰ एम॰ एल॰ पोलकको", पृष्ठ ४१४। भेंटके विषयमें लॉर्ड क्रू के विवरणके लिए देखिए परिशिष्ट २४।