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लॉर्ड क्रू के साथ भेंटका सार

अपना बनाया हुआ है और उन्होंने उसमें निःसन्देह अवास्तविकताका आश्रय लिया है। कानून ऐसी धाराओंसे भरा पड़ा है।

लॉर्ड क्रू (बीचमें बोलते हुए): मैं आपके विचारोंसे बहुत हद तक सहमत हूँ। मेरे खयालसे आप जो-कुछ कहते हैं वह बिलकुल न्यायसंगत और उचित है; लेकिन जनरल स्मट्स अंग्रेज नहीं हैं, और इसलिए वे सैद्धान्तिक समानताके खयालको भी पसन्द नहीं करते।

गांधी: यदि ऐसी बात है तो यह हमारे लिए कानूनकी किताबसे प्रजाति-सम्बन्धी धब्बेको मिटाने के लिए जोर देनेका और भी बड़ा कारण है। और इस विरोधके द्वारा, हमारा खयाल है, हम साम्राज्यकी सेवा कर रहे हैं। जैसा श्रीमानने देखा होगा, यह संघर्ष बादमें चल कर शुद्ध आदर्शोंका संघर्ष रह गया है। हमें कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं साधना है, और यदि यह प्रश्न केवल कुछ सुसंस्कृत भारतीयोंके प्रवेशका होता, तो वह समाजके कल्याणके लिए कितना ही वांछनीय क्यों न होता, जहाँतक मेरा अपना सम्बन्ध है, मैं अपने देशवासियोंको इतने कष्टोंमें डालने और उन्हें संघर्ष जारी रखनेकी सलाह देनेमें बहुत आगा-पीछा करता। यदि मैं आपका समय खराब नहीं कर रहा हूँ तो आपको यह बताना चाहूँगा कि संख्या सीमित करनेकी बात कैसे आरम्भ हुई। 'ट्रान्सवाल लीडर' के सम्पादक श्री कार्टराइटने, जो बोअरोंके मित्र हैं और सदा प्रतिनिधित्वहीन वर्गोके मित्र रहे हैं और मेरे भी विशेष मित्र हैं, मुझसे कहा कि क्लबोंमें चर्चा यह है कि सैद्धान्तिक समानताकी आड़में मेरा कोई छुपा उद्देश्य है और दरअसल मैंने एशियाइयोंके वास्तविक प्रवेश निषेधकी नीतिको स्वीकार नहीं किया है। श्री कार्टराइटके जो मित्र क्लबोंमें उनसे ऐसी बातें करते थे उनको वे सन्तोषजनक उत्तर दे सकें, इस खयालसे मैंने उनसे कहा था कि यदि ऐसी बात है तो वे अपने मित्रोंसे कह सकते हैं कि मैं भारतीय समाजको एक बहुत कड़ी परीक्षा स्वीकार करनेकी सलाह देनेके लिए तैयार हूँ। वह परीक्षा ऐसी कड़ी हो सकती है कि उससे लगभग छ: उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय ही प्रति वर्ष देशमें प्रवेश कर सकें। इसलिए आप देखेंगे कि संघर्षके आरम्भसे ही, हमने भारतीयोंके प्रवेशको कभी कोई महत्व नहीं दिया है; बल्कि हम सदा कानूनी समानताके लिए लड़ते आये हैं।

लॉर्ड क्रू: लेकिन, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि जनरल स्मट्सको अपने लोगोंसे लॉर्ड ऍम्टहिलका संशोधन मंजूर करानेमें कठिनाई हो सकती है?

गांधी: नहीं, मुझे तो नहीं लगता। मैं नहीं सोचता कि प्रगतिवादी दलसे उन्हें कोई कठिनाई हो सकती है। मुझे याद है कि सर्टिफिकेट जलानेके बाद कार्यकारिणी परिषद (एक्जिक्यूटिव कौंसिल) की बैठकमें जब हम इसी सवालपर चर्चा कर रहे थे तब सर जॉर्ज फेरारने जनरल स्मट्ससे इस कठिनाईसे निकलनेका कोई रास्ता सुझानेकी प्रार्थना की थी। लेकिन जनरल स्मट्सने कहा कि वे प्रवासी कानूनमें सुधार नहीं कर सकते। इसीलिए शिक्षित भारतीयोंके दर्जेका सवाल तय हुए बिना रह गया। उपनिवेशोंके लोग बेशक यह चाहते हैं कि आम तौरपर एशियाइयोंको आने न दिया जाये, ताकि स्पर्धासे बचा जा सके। यह नीति स्वीकृत कर ली गई है, इसलिए सैद्धान्तिक समानताके विरुद्ध उनको आपत्ति होगी, यह बात मेरी समझमें नहीं आती।

श्री हाजी हबीब: सच बात यह है कि हमें बम्बईसे प्रोफेसर गोखले और सर फीरोजशाह मेहताके दलका तार मिला है, जिसका आशय यह है कि हम दूसरे संशोधनको स्वीकार