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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बन्धमें सब कुछ मालूम हो गया है और यदि उदारदलीय मन्त्रिमण्डल जल्दी ही समाप्त न हो गया तो कुछ किया जा सकता है।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१०४ अ) से।

२६७. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१२]

[सितम्बर १६, १९०९ के बाद]

मैं इस बार ऐसा तो लिख नहीं सकता कि हम जहाँ थे वहींके-वहीं हैं। हम लॉर्ड क्रू से १६ तारीखको मिले। उन्होंने कहा कि जनरल स्मट्स कानूनको रद करने और अमुक संख्या शिक्षितोंको स्थायी निवासके अनुमतिपत्र (परमिट) देनेकी बात मंजूर करते हैं। किन्तु यह बात उनके गले नहीं उतरती कि भारतीय शिक्षा सम्बन्धी परीक्षामें उत्तीर्ण होकर अधिकारपूर्वक दक्षिण आफ्रिकामें आयें। इसलिए हमने जवाब दिया कि जबतक [प्रवेशका] अधिकार नहीं मिलता तबतक लड़ाई तो जारी ही रहेगी। जबतक यह अधिकार नहीं मिल जाता, तबतक भारतकी प्रतिष्ठा नहीं होगी। लड़ाई ट्रान्सवालके भारतीयोंके व्यक्तिगत अधिकारकी रक्षाकी नहीं, बल्कि भारतकी प्रतिष्ठा की है। कानूनमें समान अधिकार रखनेके बाद भले ही व्यवहारमें वे न दिये जायें। उसको सहन किया जा सकता है। किन्तु कानूनमें अधिकार न देना तो भारतीयोंकी नाक काट लेनेके समान होगा। बहुत बहसके बाद लॉर्ड क्रू ने यह मंजूर किया कि हमारी लड़ाई शुद्ध और अधिकार-सम्बन्धी है। उन्होंने जनरल स्मट्सको तार देना स्वीकार किया है। अब उत्तर क्या आता है, यह देखना है। इससे ज्यादा क्या हो सकता है? हमने लॉर्ड क्रू से साफ कह दिया है कि यदि जनरल स्मट्स हमारी माँग स्वीकार न करेंगे तो हम समझेंगे कि अभी हमने पर्याप्त कष्ट नहीं उठाये हैं, पर हम और भी कष्ट उठानेके लिए तैयार हैं।

उक्त बातचीत करते-करते भारतमें जारी संघर्षके सम्बन्धमें भी बात हुई। ऐसा दिखाई देता है कि श्री पोलक भारतमें जो दौड़-धूप कर रहे हैं उससे [हमारे मामलेको] बहुत बल मिल रहा है। बम्बईकी विराट् सभाका तार यहाँके अखबारोंमें बहुत अच्छी तरह छापा गया था। उसके अनुसार सभामें [सरकारसे] माँग की गई कि गिरमिटियोंको नेटाल भेजना बन्द किया जाये। श्री पोलकके भाषणसे लोग बहुत आवेशमें आये। नागप्पनकी मृत्युकी खबरसे भी वे बहुत क्षुब्ध हुए। इसके अलावा, जो लोग निर्वासित किये गये हैं उनकी सहायताके लिए चन्दा भी शुरू किया गया है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह सभा बहुत ही अच्छी हुई।

जोहानिसबर्गसे चीनियोंकी गिरफ्तारी, जेलवासियोंके लिए रमजानमें खानेका खास इन्तजाम न करने और श्री वरनॉनकी आलोचनाके बारेमें जो तार आये हैं वे भी शुभ हैं। इसमें शक नहीं कि हमारे ऊपर ज्यों-ज्यों ज्यादा तकलीफें आती हैं, हम त्यों-त्यों ज्यादा दृढ़ होते जाते हैं और त्यों-त्यों हमें [संघर्षमें] सहयोग मिलता है। हम स्वयं कष्ट उठा रहे हैं, लॉर्ड क्रू भी इसीलिए हमारे वास्ते डटकर प्रयत्न कर रहे हैं।