पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१७
पत्र : मणिलाल गांधी को


लॉर्ड क्रू ने यह भी कहा है कि यदि कहीं जनरल स्मट्स हमारी माँग मंजूर न करें तो हमें संघ-संसद (यूनियन पार्लियामेंट) की राह देखनी चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि हमें संसदकी बैठक होने तक लड़ाई जारी रखना है। यदि हम लड़ाई बन्द कर देंगे तो समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी हालत बुरी हो जायेगी और जैसा श्री रुस्तमजीने कहा है, हम सारे भारतको नाक अपने हाथसे काटेंगे और कायर भी साबित होंगे।

किन्तु मुझे यह कहनेमें जरा भी संकोच नहीं है कि जो भारतीय इस समय बहादुरी दिखा रहे हैं वे ऐसे हैं कि मृत्युपर्यन्त लड़ते रहेंगे। मुझे आशा है कि जो भाई जेलसे छूटे हैं वे जेल जानेके लिए तैयार ही हैं और जब सरकार गिरफ्तार करेगी तब जेलका स्वागत करेंगे। मैं आशा करता हूँ कि श्री दाउद मुहम्मद भी इस पत्रके पहुँचने तक जेलमें विराजते होंगे। मेरे विचारसे हमारा जेलमें रहकर मरना जेलके बाहर तन्दुरुस्त रहकर जीनेसे अच्छा है। ऐसा करनेसे हमारी इज्जत रहती है, और उसीमें भारतकी सेवा है। यह समय दुःख करनेका नहीं बल्कि कष्टोंके लिए बधाई देनेका है। जिस देशमें निर्दोष लोगोंपर गुलामी लादी जाती हो, उन्हें सजा दी जाती हो, उस देशमें सभी अच्छे लोगोंको जेलमें ही आनन्द और सुख मानना चाहिए। यह विचार प्रत्येक भारतीय वीरको अपने मनमें अंकित कर लेना है।

मैं पहले बता चुका हूँ कि यदि जनरल स्मट्सका जवाब निराशाजनक होगा तो हमें यहाँ कुछ समय तक सार्वजनिक सभा आदि करके फिर जेल जानेके लिए दक्षिण आफ्रिका वापस पहुँच जाना चाहिए। इस बीच यह भी विचार करना है कि हमें भारत जाना चाहिए या नहीं। इस सम्बन्धमें मैं स्वयं तो कोई निश्चित निर्णय नहीं कर सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१०-१९०९

२६८. पत्र: मणिलाल गांधीको

[लन्दन]
सितम्बर १७, १९०९

चि॰ मणिलाल,

श्री वेस्टके सम्बन्धमें तुम्हारा पिछली २१ तारीखका पत्र पढ़कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। इस पत्रको मैंने दो बार पढ़ा है। मुझे तुम्हारे ऊपर गर्व हुआ और मेरे ऐसा पुत्र है, इसके लिए मैंने ईश्वरका अनुग्रह माना। मैं कामना करता हूँ कि तुम सदा ऐसे ही बने रहो। खरी शिक्षा यही है कि परोपकार किया जाये, दूसरोंकी सेवा की जाये, और ऐसा करनेमें मनमें जरा भी अभिमान न लाया जाये। तुम ज्यों-ज्यों उम्र में बड़े होते जाओगे, त्यों-त्यों तुम्हें इसका अधिक अनुभव होता जायेगा। रोगियोंकी सेवाके मार्गसे अच्छा मार्ग दूसरा क्या होगा? इसमें बहुत कुछ धर्म आ जाता है।

९-२७