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२७०. भारतीय मुस्लिम लीगकी लन्दन शाखाको
लिखे पत्रका मसविदा

[लन्दन
सितम्बर १७, १९०९के बाद]

मन्त्री


अखिल भारतीय मुस्लिम लीग
लन्दन शाखा


प्रिय महोदय,

ट्रान्सवालके शिष्टमण्डलको जोहानिसबर्गसे नीचे लिखा तार मिला है:

कलकी सभा जोशीली। लड़ाई जारी रखनेका दृढ़ संकल्प। प्रस्तावोंमें रिहा लोगोंको बधाई, प्रतिनिधियोंपर पूर्ण विश्वासको पुनराभिव्यक्ति, उनके प्रयत्नोंकी हार्दिक सराहना, पूर्ण समर्थनकी पुनः प्रतिज्ञा, वरनॉनके उस वक्तव्यका विरोध जो सरकार द्वारा खण्डन न होने की स्थितिमें एशियाइयोंकी दृष्टिमें सरकारी नीतिका द्योतक। रमजानमें मुसलमान कैदियोंको विशेष भोजन देनेकी प्रार्थना नामंजूर।

मैं आपका ध्यान विशेष रूपसे इस तारके आखिरी अनुच्छेदकी ओर दिलाता हूँ। इससे प्रकट होता है कि जो ब्रिटिश भारतीय मुसलमान ट्रान्सवालमें बस गये हैं और जिन्हें धर्म और विवेकके आधारपर एशियाई कानूनके नामसे प्रसिद्ध कानूनकी अवहेलना करने और अपने इस कार्यके लिए कैद भुगतनेकी जरूरत महसूस हुई है, उनकी धार्मिक भावनाओंको ट्रान्सवालकी सरकारने गहरी ठेस पहुँचाई है।

जो ब्रिटिश झण्ड सब धर्मोंका सम्मान करता है, उसीके नीचे मुसलमान अनाक्रामक प्रतिरोधियोंको एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धार्मिक व्रतका पालन करनेसे रोका जा रहा है। यह एक गम्भीर मामला है। मुझे आशा है कि लीग इस बारेमें फौरन कार्रवाई करेगी।

मैं यह भी बतला दूँ कि पिछले साल फोक्सरस्टकी जेलमें रमजानके महीने में मुसलमान अनाक्रामक प्रतिरोधियोंको सुविधाएँ दी गई थीं।

आपका, आदि,

टाइप किये हुए अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१७९) से