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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यदि सर जॉर्ज फेरारकी सक्रिय सहानुभूति प्राप्त की जा सकती है, तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भले ही जनरल स्मट्स लॉर्ड क्रू को प्रतिकूल उत्तर दें, उनको सर जॉर्जकी बात तो सुननी ही होगी।

यदि जनरल स्मट्सका उत्तर प्रतिकूल आता है तो मैं नहीं सोचता कि श्री हाजी हबीब और मेरे लिए दक्षिण आफ्रिकाको रवाना होना सम्भव होगा। मैं यह अनुभव करता हूँ कि हमें अपनी रवानगीसे पूर्व यहाँ कुछ सार्वजनिक कार्य करना आवश्यक होगा।

हम आशा करते हैं कि आपका अवकाश चैनसे बीतेगा और मुझे विश्वास है, आपको इच्छित विश्राम मिलेगा, जिसके आप अधिकारी हैं।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०८४) से।

२७५. पत्र: उपनिवेश-उपसचिवको[१]

[लन्दन]
सितम्बर २०, १९०९

महोदय,

नेटालके प्रवासी-प्रतिबन्धक विभागकी ओरसे मेरे साथी श्री आमद भायातके नाम भेजा गया एक पत्र यहाँ उनकी अनुपस्थितिमें आया है। श्री अमोद भायातने एक मौलवीके लिए, जिसे पीटरमैरित्सबर्ग में मस्जिदका और एक मदरसेका काम सम्भालना है, एक अस्थायी आवाजाही (विज़िटिंग) पासकी माँग करते हुए जो अर्जी दी थी, यह पत्र उसीके उत्तरमें भेजा गया है। यह अर्जी पीटरमैरित्सबर्गके सम्पूर्ण मुस्लिम समाजकी ओरसे और उसके ही नामसे भेजी गई थी। मैं इसके साथ पूर्वोक्त पत्रकी एक नकल भेज रहा हूँ।

मैं साहसपूर्वक यह मान लेता हूँ कि लॉर्ड क्रू उन ब्रिटिश भारतीय मुसलमानोंकी भावनाओंका आकलन कर सकेंगे, जो उस उपनिवेशमें ईमानदारीसे अपनी जीविका कमानेके उद्देश्यसे बसे हैं। मैं और मेरे सहकारी मानते हैं कि प्रवासी-प्रतिबन्धक विभागके इस पत्रसे मनुष्यके नाते, ब्रिटिश प्रजाके नाते, और उतना ही, मुसलमान होनेके नाते हमारी भावनाओंको कड़ी चोट पहुँची है। प्रवासी अधिकारीको खास तौरसे यह आश्वासन दे दिया

  1. इस पत्रमें एम॰ सी॰ आंगलियाकी सही है, किन्तु इस बातका प्रमाण है कि मसविदा गांधीजीका था। पोलकने अपने १४ अक्तूबर, १९०९ के पत्रमें लिखा था: "पीटरमरित्सबर्गके मौलवीके विषय में (नेटालके प्रतिनिधियों में से एकके हाथों) भेजा हुआ आपका पत्र जोरदार है और बहुत अच्छा है, लेकिन, माफ कीजिए, उसकी लिखावट बहुत रही है। लोग कहते हैं कि वकीलोंका लेखन व्याकरणकी दृष्टिसे बहुत खराब होता है। मुझे आशा है कि आप मुझपर ऐसा कोई दोष नहीं लगा पायेंगे। मैं इस पत्रको अपनी आगामी पुस्तकमें परिशिष्टकी तरह दे रहा हूँ। वह प्रकाशनकी दृष्टिसे दिलचस्प मालूम होता है और उसमें कोई भेद तो खोला नहीं गया है।..." पोलकने यह पत्र अपने ए ट्रैजेडी ऑफ एम्पायर नामक पुस्तिकामें परिशिष्ट–डीके रूपमें उद्धृत किया था। देखिए "पत्र: अमीर अलीको", पृष्ठ ४३२-३३।