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पत्र: उपनिवेश-उपसचिवको

गया था कि इस मौलवीकी जरूरत सिर्फ धार्मिक कार्योके लिए है और वह व्यापारमें या किसी भी दूसरे व्यवसायमें नहीं पड़ेगा और इसलिए किसीके साथ प्रतियोगिता नहीं करेगा।

पूर्वोक्त साधारण अर्जी मंजूर करानेके लिए हमारे समाजको इतनी भारी मेहनत करनी पड़े और यह अर्जी इतने आपत्तिजनक ढंगसे मंजूर की जाये—और वह भी एक ऐसे मामलेमें जिसका उपनिवेशकी आर्थिक नीतिसे कहीं कोई सम्बन्ध नहीं है, सिर्फ यह बात जाहिर करता है कि ब्रिटिश भारतीयोंको नेटालमें कैसी दुःखदायी, अपमानजनक और कठिन परिस्थितियों में रहना पड़ता है। आवाजाही (विजिटिंग) पास सिर्फ तीन ही महीनोंके लिए क्यों दिया गया है, उसे हर तिमाहीके बाद नया करानेके लिए क्यों कहा गया है और जब उसे नया किया जाये तब हर बार उसके साथ बीस शिलिंग भरनेकी दण्ड-जैसी शर्त क्यों लगाई गई है—ये सारी बातें हमारी समझके बाहर हैं। इस शिष्टमण्डलकी नम्र रायमें ऐसी नीति अत्यन्त क्रूरतापूर्ण कही जा सकती है। वह भारतीय समाजकी सहन शक्तिपर भारी बोझ लादती है। हमारे शिष्टमण्डलके यहाँ रहते हुए, मैं नम्रतापूर्वक यह अनुरोध करता हूँ कि लॉर्ड क्रू नेटालमें भारतीयोंकी इस विसंगत स्थितिपर गम्भीरतापूर्वक विचार करें। हम मानते हैं कि ऐसी स्थिति, साम्राज्यकी सुरक्षाका—उस साम्राज्यकी सुरक्षाका—खयाल करते हुए, जिसके प्रजाजन होनेका भारतीयोंको अभीतक गर्व रहा है, अधिक काल तक नहीं चलाई जा सकती और न चलाई जानी चाहिए। और इसका कारण यह है कि वह असह्य है। हम अपने प्रति, समाजका हममें जो विश्वास है उसके प्रति और साम्राज्यके प्रति अन्याय करेंगे यदि हम लॉर्ड महोदयको इस बातकी प्रतीति नहीं करा देते कि नेटालमें ब्रिटिश भारतीयोंके साथ जो अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा है वह उनके हृदयमें शूलकी तरह चुभता है और यह हालत जिस दिन हृदसे गुजर जायेगी उस दिन—वह दिन कभी भी आ सकता है—क्या परिणाम होंगे, उनकी कल्पना करना कठिन है।

मैंने अपनी बात अपने साथी प्रतिनिधियोंकी सम्मतिसे किंचित् आवेशपूर्वक लिखी है, किन्तु यह आवेश अवसरकी माँगके अनुसार जितना होना चाहिए उससे ज्यादा नहीं है।

आपका, आदि,
एम॰ सी॰ आंगलिया

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्डस: १७९/२५५।