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पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको


मैं इस बात में आपसे बिल्कुल सहमत हूँ कि सभाका रद किया जाना आन्दोलनके पक्षमें बढ़िया विज्ञापन रहा और उससे अधिकारियोंकी मूर्खताका भी उतना ही अच्छा विज्ञापन हो गया।[१]

'ऐडवोकेट ऑफ़ इंडिया'का आक्षेप बिलकुल मूर्खतापूर्ण है।[२] उससे पत्र और उसके लेखकके अतिरिक्त अन्य किसीकी हानि नहीं हो सकती। यदि श्री वाडियाने उसका समाधान कर दिया हो तो ठीक ही है। यदि उन्होंने न किया हो तो भी, मेरा खयाल है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस कतरनमें यह आक्षेप था वह [आपके भेजे] कतरनोंके दो पैकेटोंमें नहीं मिली। मेरा खयाल है, कल्याणदासने या जिसने भी कतरनें बनाई हों, अवश्य ही यह सोचा होगा कि वह अनुच्छेद इतना तिरस्कार-योग्य है कि यहाँ रहनेवाले हम लोगोंको उसे देखना भी नहीं चाहिए।

मुझे अबतक लॉर्ड क्रू का उत्तर नहीं मिला है। मैं याद दिलाने के लिए एक चिट्ठी[३] भेज रहा हूँ।

मैं आपको भेजे अपने पत्रोंके खोले जानेकी बात समझ सकता हूँ, लेकिन आपको भेजे मिलीके पत्र इरादतन खोले जाते हैं, यह बात मेरी समझमें नहीं आती। हम आशा करें, इन पत्रोंको पढ़नेसे पढ़नेवालोंकी ज्ञान-वृद्धि हुई होगी और उनको पत्नी-भक्तिका अर्थ भी मालूम हो गया होगा। मिलीके पत्रोंसे उनको पूरी-पूरी शिक्षा मिल गई होगी।[४]

यदि स्मट्सका उत्तर अनुकूल न हुआ तो यहाँसे मेरी रवानगी अभी एक महीनेतक और सम्भव नहीं है। श्री मायर अब यहाँ हैं। मैंने उनसे भेंटका समय माँगा है। यदि जल्दी ही संसद भंग न हुई, तो अब यहाँका मौसम सार्वजनिक कार्यके लिए अनुकूल है।

मेरा खयाल है, आपको यह नहीं लिखा है कि मैं जिन भारतीय महिलाओंसे मिल सकता हूँ उन सबसे मिल रहा हूँ और उनसे 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादकके नाम

  1. अपने ४ सितम्बरके पत्रमें श्री पोलकने लिखा था: "मंसूखकी गई सभासे हमारे कार्यका हित ही हुआ है। इससे ट्रान्सवालकी ओर लोगों का ध्यान खिंचा है; कई दुल-मुल लोगोंमें उत्साह भर गया है, हमारी भूमिका स्पष्ट हुई है तथा श्री फीरोजशाह मेहताका परिवर्तित हुआ है। वे अब बड़े उत्साहसे कार्य में लग गये हैं। वह सभा, जिससे, ऐसी सफलता मिलनेका विश्वास है, जैसी आजतक नहीं मिली आखिरकार टाउनहॉल ही में तारीख १४ को होगी। सरकारने अज्ञानवश भूल की थी, किन्तु शेरिफने मूर्खतावश। सारा किस्सा ही मिथ्या-भ्रम और प्रमादका है। सरकारने अब अपनी गलती महसूस की है और शेरिफ की भी। इसके लिए क्षमा-याचना भी की है (जरा कल्पना करें!) और सभाके लिए टाउन हॉल दे दिया है।
  2. श्री पोलकने इस सम्बन्ध में गांधीजीको ४ सितम्बरको लिखा था: "श्री गोखलेने गवर्नरके मनमें मेरे सम्बन्धमें जो गलतफहमी थी, उसे दूर कर दिया है गॉर्डन द्वारा ऐडवोकेट ऑफ इंडिया में मुझपर जो व्यक्तिगत आक्षेप किये गये हैं, उनमें आप इसकी ध्वनि पायेंगे। यह सरासर अन्यायपूर्ण है, क्योंकि रायटर के प्रधान व्यवस्थापकका एक व्यक्तिगत पत्र भी मैं उसके नाम लाया था। मुझे मालूम हुआ है कि यह (गॉर्डन) बढ़ा लफंगा है। मेरा खयाल है, एच॰ ए॰ वाड़िया इसका जवाब देंगे। मैं नहीं दे सकूँगा।" गांधीजीने ऐडवोकेट को जवाब दिया था। देखिए "पत्र : 'ऍडवोकेट ऑफ इंडिया' को", पृष्ठ ४३४-३५।
  3. देखिए पिछला शीर्षक।
  4. १४ अक्तूबरको पोलकने इसके उत्तर में लिखा था : "मिलीके पत्रोंके खोले जानेके विषय में आप हम दोनोंसे ज्यादा सहिष्णु हैं। मुझे लगता है कि आपके प्रेम-पत्र लिखने के दिन बीत चुके हैं। मुझे आपसे सहानुभूति है, पर मैंने मिलीको दाम्पत्य प्रेमकी शिक्षा देनेका अधिकार अभी नहीं दिया है। "