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पत्र: मणिलाल गांधीको

शर्तपर कि प्रमाणपत्र हर तीसरे महीने बदलवा लिया जाये और उसपर हर बार एक पौंडका स्टाम्प लगाया जाये।

श्री आँगलिया आपको यह पत्र दिखा देंगे। आप इसके भीतरी अर्थको देखें तो मालूम हो जायेगा कि यह कितना अपमानजनक है। मेरी राय यह है कि एक आत्माभिमानी जातिके नाते हम इन सन्तापजनक शर्तोंको मंजूर नहीं कर सकते। मेरी राय यह भी है कि हर तीसरे महीने प्रमाणपत्र बदलवानेकी और उसपर एक पौंडका स्टाम्प लगानेकी शर्त बेहयाईके साथ लूटना ही है।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०९६) से ।

२८२. पत्र: मणिलाल गांधीको

[लन्दन]
सितम्बर २७, १९०९

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला।

"तुम्हें क्या करना है?"—इस सवालसे तुम घबरा गये। अगर इसका उत्तर तुम्हारी ओरसे मैं दूँ तो यह कहूँगा कि तुम्हें अपना कर्तव्य पूरा करना है। तुम्हारा वर्तमान कर्तव्य माता-पिताकी सेवा करना, जितना हो सके उतना अध्ययन करना और खेती करना है। तुम्हें भविष्यकी चिन्ता नहीं करनी है। उसकी चिन्ता तुम्हारे माता-पिताको है। जब वे न रहेंगे तब तुम उसकी चिन्ता करना। इतना तो निश्चित मान लेना चाहिए कि तुम्हें बैरिस्टर या डॉक्टरका धन्धा नहीं करना है। हम गरीब हैं और गरीब रहना चाहते हैं। पैसेकी आवश्यकता केवल भरण-पोषणके लिए होती है। और जो मेहनत करते हैं भरण-पोषण उनको मिल ही जाता है। फीनिक्सको उठाना हमारा काम है, क्योंकि उसके द्वारा हम अपनी आत्माको खोज सकते हैं और देशकी सेवा कर सकते हैं। इतना पक्की तरह मान लेना कि मैं तुम्हारी चिन्ता सदा करता रहता हूँ। मनुष्यका वास्तविक कर्तव्य यही है कि वह अपना चरित्र बनाये। कमानेके लिए ही कुछ खास सीखना जरूरी हो, सो बात नहीं है। जो व्यक्ति कभी नीतिका मार्ग नहीं छोड़ता वह कभी भूखों नहीं मरता, और ऐसा अवसर आ जाये तो भयभीत नहीं होता। तुम निश्चिन्त रहकर वहाँ जो अध्ययन करते बने, करते रहना। यह लिखते हुए तुमसे मिलने और तुम्हें हृदयसे लगा लेनेका जी होता है। और वैसा हो नहीं सकता, इसलिए आँखोंमें पानी भर-भर आता है। भरोसा रखो, बापू कभी तुम्हारे प्रति निर्दयता नहीं बरतेगा। मैं जो-कुछ करता हूँ, तुम्हारे लिए हितकर समझकर ही करता हूँ। तुम यह मान लो कि तुम भटकोगे नहीं, क्योंकि तुम दूसरे लोगोंकी सेवा कर रहे हो।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ९०) से।

सौजन्य: सुशीलाबेन गांधी।

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