पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२८७. पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको[१]

[लन्दन]
सितम्बर, ३०, १९०९

प्रिय हेनरी,

मैंने आपको छगनलालके सम्बन्धमें अलग पत्र लिखा है। मैं नहीं जानता कि आप किसकी सराहना करते हैं—जो धीरज दिखा सकता है उसकी, या जो धीरज नहीं दिखा सकता उसकी। पत्रमें जो वाक्य है उसके दोनों अर्थ निकलते हैं।[२] मॉड और रिच उसका एक अर्थ लगाते हैं और [मैं] दूसरा।

मुझे अहमदाबाद, कठूर और सुरतकी सभाओंके सम्बन्धमें आपका तार मिल गया। उन सबका असर होगा।

मैं 'ऍडवोकेट ऑफ़ इंडिया' के लेखोंको[३] बहुत कीमती समझता हूँ। ओछे लोग भी हमारी असाधारण सेवा कर जाते हैं।... गॉर्डनने जो-कुछ लिखा है, उसीको ले उसने लिखा है कि इस मामले में आपका [निहित] स्वार्थ है। यह कथन अनुचित कदापि नहीं है। उसने वहाँ एक स्थायी समिति बनानेकी पूर्ण आवश्यकता सिद्ध कर दी है, जिसमें रिच-जैसा कोई व्यक्ति दिन-रात काम करता रहे और मामला ठंडा नहीं पड़ने दे। मुझे आशा है कि आप ऐसा व्यक्ति खोजनेमें सफल होंगे। क्या आपने 'गुजराती' के श्री एन॰ वी॰ गोखलेसे[४] भेंट की है? मैं यह कहना नहीं चाहता कि वे ऐसे व्यक्ति हैं। मुझे कोई ऐसा व्यक्ति याद नहीं आता। वह व्यक्ति ऐसा होना चाहिए, जिसे अपने कामसे प्रेम हो, जिसके पास दूसरे बहुत-से काम न हों और, साथ ही, जिसे इतनी फुरसत भी हो कि वह लगभग पूरा ध्यान दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नपर लगा सके।

मैं आपके इस विचारसे बिल्कुल सहमत नहीं हूँ कि आप वेतन नहीं, अपने काममें होनेवाला खर्च ले रहे हैं। यदि केवल यही अन्तर होता तो मैं गॉर्डनकी इस बातसे सहमत हो जाता कि यह अन्तर सूक्ष्म है। आप देखेंगे कि मैंने 'ऍडवोकेट' को लिखे अपने पत्रमें, जिसकी प्रतिलिपि मैं साथ भेज रहा हूँ,[५] इसका किस प्रकार विवेचन किया है। मेरी सम्मतिमें फर्क

  1. यह पत्र कहीं-कहीं कटाफटा और अस्पष्ट है। जहाँ सम्भव हुआ है वहाँ गांधीजीको लिखे पोलकके पत्रोंके संदर्भोके आधारपर अनुमानसे चौकोर कोठकों में शब्द दे दिये गये हैं।
  2. यह पोलकके १० सितम्बरके पत्रके सम्बन्धमें है जिसमें उन्होंने लिखा है: "आपका धीरज प्रशंसनीय है। मुझे आपसे ईर्ष्या होती है। मुझे गीताके निष्काम कर्मयोगके उपदेशकी अच्छाई अधिकाधिक दिखाई देती जाती है। लेकिन मुझे यह भी दिखता जाता है कि इसपर अमल करना कितना कठिन है। और उस मनुष्यकी मैं प्रशंसा करता हूँ जो इसपर अमल कर सकता है।" पत्र पोलककी लिखावटमें है और इसमें अन्त में सम्बोधनका चिह्न अंग्रेजीके "कैन" (सकता है) शब्दसे मिल गया है, इसलिए 'नहीं कर सकता है' अर्थ भी देता है।
  3. यहाँ एक शब्द गायब है।
  4. गुजरातीके अंग्रेजी विभागके सम्पादक।
  5. देखिए "पत्र: ऍडवोकेट ऑफ इंडियाको", पृष्ठ ४३४-३५।