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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह इस दृष्टिसे दोषपूर्ण है कि उसके अनुसार उन एशियाइयोंको, जो ट्रान्सवालमें हैं, किन्तु जिन्हें अभीतक पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) नहीं मिले हैं, यह सिद्ध करनेकी आवश्यकता होती है कि वे युद्धसे ३ वर्ष पहलेसे वहाँ रहते हैं । उनमें से ज्यादातर लोगोंने जायज तरीकेसे देशमें प्रवेश किया है और निहित अधिकार प्राप्त किये हैं । ऐसे एशियाइयोंके उदाहरण भी हैं जो ट्रान्सवाल में युद्ध से पूर्व एक वर्षसे ज्यादा नहीं रहे थे, किन्तु उन्हें पंजीयन प्रमाणपत्र मिल गये हैं । सादर अनुरोध है कि जिन एशियाइयोंको अभीतक पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं मिले हैं, किन्तु जो ट्रान्सवालमें हैं, उनके साथ युद्धसे पहले तीन वर्ष के निवासके उस कठोर और मनमाने अनुरोध के अनुसार व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए जो उन एशियाइयोंपर लागू होता है, जो अभीतक ट्रान्सवालके बाहर हैं ।

६. परवाना ( लाइसेंस ) देनेसे सम्बन्धित धाराका ठीक-ठीक काममें आना अँगूठा-निशानी सम्बन्धी शर्तोंके उदारतापूर्ण अमलपर ही निर्भर होगा ।

अँगुलियोंके निशान

७. विधेयकको दूसरे वाचनके लिए पेश करते हुए उपनिवेश-सचिवने कहा था कि अंगुलियों या अँगूठोंके निशान देने के मामलेमें आपत्ति नहीं है । प्रार्थी संघकी नम्र सम्मतिम माननीय मन्त्रीने यह वक्तव्य देकर भारतीय समाजके साथ न्याय नहीं किया; क्योंकि वे भली भाँति जानते थे कि पिछली जनवरीके समझौते के बाद बहुत-से एशियाइयोंने अँगुलियोंके निशानके विरोध में बहुत तीव्र आन्दोलन किया था । यद्यपि यह ठीक है कि भारतीय समाजके मुख्य सदस्योंने अँगुलियोंके निशान से सम्बन्धित आपत्तिको कभी मूलभूत आपत्ति नहीं माना, किन्तु बहुत-से एशियाई, विशेषतः पठान, जो कदाचित १५० से अधिक की संख्या में इस उपनिवेशमें रहते हैं, इस बातको निःसन्देह सबसे बड़ी आपत्ति मानते थे और अब भी मानते हैं । समझौतेके अन्तर्गत अँगुलियों या अँगूठोंके निशान स्वेच्छासे केवल इसलिए दे दिये गये थे कि सरकारको समाजका वैज्ञानिक वर्गीकरण करने में सुविधा हो और समाजकी नेकनीयती और सरकारको सहायता देने की इच्छा प्रकट हो । समाजको यह स्वेच्छया कार्य बहुत महँगा पड़ा है । सरकारको उक्त सहायता देने के कारण [संघके] अध्यक्ष और मन्त्री, दोनोंको अपने देशवासियोंके हाथों गहरी शारीरिक क्षति उठानी पड़ी है । खासे अनुभवके पश्चात् प्रार्थी संघ महामहिम सम्राट्की सरकारको विश्वास दिलाता है कि केवल एशियाइयोंसे किसी बड़ी संख्या में अनिवार्य रूपसे अँगुलियोंके निशान लेनेसे ऐसा झगड़ा उठ खड़ा होगा । चूंकि ज्यादातर ब्रिटिश भारतीयोंने अधिकारियोंको एक बार ये निशान दे दिये हैं, इसलिए अब उनकी कोई खास जरूरत भी नहीं है । कुछ भी हो, प्रशासन-तन्त्रका वह भाग निर्विघ्न रूपसे काम कर सके, इसके लिए बहुत अधिक उदारता बरतना आवश्यक होगा ।

१९०७ के कानून २ को रद करनेके विषय में

८. जैसा कि स्थानीय सरकारकी सेवाम निवेदन किया जा चुका है, १९०७ के एशियाई कानूनके मुकाबले यह कानून भले ही स्वीकार्य हो, प्रार्थी संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है, वह समाज इसके लाभको तबतक स्वीकार नहीं कर सकता जबतक

१. गांधीजीवर १० फरवरी १९०८ को प्रहार किया गया था । देखिए खण्ड ८, ५४ ७४ और ९०-९१ ।

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