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प्रार्थनापत्र : उपनिवेश मन्त्रीको

कानूनकी किताबसे १९०७ का अधिनियम २ हटा नहीं दिया जाता और शिक्षित एशियाइयोंकी स्थिति उचित और न्यायसंगत रूपसे स्पष्ट नहीं कर दी जाती । प्रार्थी संघकी नम्र रायमें, सरकारकी प्रतिष्ठाके लिए ही सही, कानूनका रद किया जाना जरूरी है ।

रद करनेका वचन

९. आदरपूर्वक निवेदन है कि माननीय उपनिवेश-सचिवने निश्चित रूपसे वादा किया था कि यदि एशियाई जातियाँ समझौतेका अपना हिस्सा पूरा कर दें, तो कानून रद कर दिया जायेगा । यह मान लिया गया है कि एशियाइयोंने समझौते के अन्तर्गत अपना कर्तव्य भली भाँति पूर्ण कर दिया है ।

१०. किन्तु यह दलील पेश की गई है कि स्वेच्छया पंजीयन (वॉलंटरी रजिस्ट्रेशन) के प्रार्थनापत्रोंकी वापसी की दरख्वास्तपर फैसला देते हुए न्यायाधीश सॉलोमनने कहा था कि कानूनको रद करनेका वचन सिद्ध नहीं हो पाया है, और इसलिए वैसा कोई वचन नहीं दिया गया था । प्रार्थी संघ महामहिम सम्राट्की सरकारका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करता है कि कानूनको रद करनेका प्रश्न अदालतके सामने पेश नहीं था और फैसला उस प्रश्नपर बिलकुल था ही नहीं । अदालतको निश्चय ही यह बताया गया था कि कानूनको रद करने के सम्बन्धमें प्रार्थीके पास जो सबूत हैं वे सारेके-सारे पेश नहीं किये गये हैं । एक नैतिक आधार देने के लिए प्रार्थनापत्रके समर्थनमें दिये गये हलफिया बयानों इस विषयके सम्बन्ध में जितना पर्याप्त था उतना कह दिया गया था । प्रार्थीका उद्देश्य यह बताना था कि वह जो अपना स्वेच्छया पंजीयनका प्रार्थनापत्र वापस लेना चाहता है, उसका आधार यह नहीं है कि उसका विचार यों ही बदल गया है, बल्कि यह विश्वास है कि स्थानीय सरकारने अपना वचन भंग कर दिया है ।

११. उपनिवेश-सचिवको लिखे गये २९ जनवरीके पत्र हस्ताक्षर करनेवालोंका उद्देश्य कानूनको रद करवाना ही था, यह बात स्वयं पत्रसे समझी जा सकती है। उसका एक अंश यह है :

इन परिस्थितियों में हम एक बार फिर सरकारके सामने विनम्र सुझाव रखेंगे कि
सोलह वर्ष से अधिक उम्रके सभी एशियाइयोंको एक निश्चित अवधिके भीतर, उदा-
हरणार्थ तीन महीने के भीतर, पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) करा लेनेकी सुविधा दी जाये; इस
प्रकार पंजीकृत लोगोंपर कानून लागू न हो ।

हस्ताक्षर करनेवालोंके सामने जो मूल मसविदा पेश किया गया था, उसमें "कानून" शब्दके आगे "की सजाएँ" शब्द भी थे । ये शब्द इस विचारसे काट दिये गये थे कि जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयन कराया है, उन सबपर यदि कानून लागू न हुआ और यदि सभी एशियाइयोंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया, तो कानूनकी किताबमें इस कानूनको रखनेका कोई कारण ही नहीं रहेगा और अधिकारी एशियाइयोंको अनधिकारी एशियाइयोंसे अलग करनेकी व्यवस्था, इसको कानूनी रूप देनेवाले विधेयक (बिल) में, जो पास किया जायेगा, कर दी जायेगी । १. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३४०, पाद-टिप्पणी २ ।

२. वही, पृष्ठ ३०५-०७ ।

३. वही, पृष्ठ ३९-४१ ।

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