श्री अली इमामने फिर बोलते हुए कहा कि दक्षिण आफ्रिकाका प्रश्न बहुत बड़ा है, इसीसे उन्होंने अपने भाषणमें उसके सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा है। किन्तु वह प्रश्न उन्हें सालता रहता है, और वे उसको भूल नहीं सकते। भारतीयोंके कष्ट दूर करनेके लिए उनसे जितना हो सकेगा उतना ये करेंगे ही।
डॉ॰ रदरफोर्डने कहा कि उनमें श्री गांधीका भाषण सुननेके बाद नया उत्साह आ गया है। ट्रान्सवालमें भारतीय एक अच्छी लड़ाई लड़ रहे हैं। सभी लोगोंको उनके उदाहरणका अनुकरण करना चाहिए। वे यथाशक्ति सहायता तो देंगे ही।
संसद-सदस्य श्री अपटनने भी वैसा ही भाषण दिया। उनके बाद श्री परीख बोले और तब सभा समाप्त हो गई। मुझे कहने की आवश्यकता नहीं कि भोजमें दोनों शिष्टमण्डलोंके सदस्य मौजूद थे।
श्री अली इमामके सम्मानमें दूसरा समारोह मंगलवार शामको चार बजे होगा। उसका आयोजन अखिल भारतीय मुस्लिम लीगकी ओरसे किया जायेगा। श्री अली इमामको यहाँसे इस्तम्बूल जाना है और वहाँसे वे भारत जायेंगे।
गुजरातियोंकी सभा
गुजराती भाषाके सुधार और विकासके उपायों पर [विचार करनेके लिए] एक सम्मेलन काठियावाड़में किया जानेवाला है। इसके समर्थनके लिए मंगलवारको सर मंचरजी भावनगरीकी अध्यक्षतामें गुजरातियोंकी एक सभा की जायेगी।[१] इस सभाके संयोजक श्री रुस्तम देसाई, श्री हुसेन दाउद मुहम्मद और श्री जेठालाल परीख हैं।
इंडियन ओपिनियन, ३०-१०-१९०९
२९०. पत्र: नारणदास गांधीको
लन्दन
अक्तूबर ३, १९०९
तुम्हारा पत्र फिर नहीं मिला। तुम्हारा चन्दा इकट्ठा करनेका काम चल रहा होगा। मैं चाहता हूँ कि यदि चि॰ छगनलाल इंग्लैंड आनेका विचार करे तो तुम दक्षिण आफ्रिका जाओ। तुम्हारा भी यही विचार हो तो मेरा आग्रह है कि तुम जाओ। इसमें सहज ही आत्म-कल्याण होगा, ऐसा मैं मानता हूँ। लेकिन इसके लिए तुम्हें पहले अपने पिताकी अनुमति लेनी चाहिए। मैं आदरणीय खुशालभाईको लिख रहा हूँ[२]।अगर उनका विचार तुम्हें भेजनेका हुआ तो वे तुम्हें यह पत्र देंगे अथवा पत्र देते हुए अपना विचार बतायेंगे। मैं यहीं हूँ, यह मानकर उत्तर देना। तुम्हारा जाना तय हो तो भी फीनिक्ससे मंजूरी मँगानी होगी।