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पत्र: खुशालचन्द गांधीको

तुम जेल जानेके लिए आओ तो मंजूरीकी जरूरत नहीं है, क्योंकि तब तो तुम्हें जोहानिसबर्ग आना होगा। अगर मानें तो जेलमें दुःख तनिक भी नहीं है, सुख ही है। तुम विशेष विचार-विमर्श चि॰ छगनलालसे करना। गांधी परिवारने सदाचरण किया है और दुराचरण भी किया है। किन्तु, हम सदाचरणके लिए प्रसिद्ध हैं। इसमें वृद्धि हो सके तो यह परिवारकी सच्ची सेवा है। इसलिए परिवारमें जितने सदाचारी युवक हैं उन्हें चुरा लेने की इच्छा मुझे सदा रहती है।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८९८) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी।

२९१. पत्र: खुशालचन्द गांधीको

लन्दन
अक्तूबर ३, १९०९

आदरणीय खुशालभाई,

चि॰ छगनलालने पहले आपसे चि॰ नारणदासको भी फीनिक्समें होम देनेकी इजाजत माँगी थी। लेकिन उस वक्त तो इजाजत नहीं मिली थी। मुझे याद है कि मैंने भी लिखा था। अब फिरसे विचार किया जा रहा है।

अगर चि॰ नारणदासको दे दें तो बुरा न होगा, इसमें उसका कल्याण है।

ऐसा चाहना स्वाभाविक है कि उत्तर अवस्थामें सब बेटे आपके पास रहें, लेकिन यह मोह भी है। अगर वे अलग रहकर आत्मकल्याण कर सकते हों और एक बेटा आपके पास रह सकता हो तो दूसरे अलग क्यों न रहें? अपने बेटोंको सदा पास रखना सचमुच स्वार्थ है। हमारा धर्म तो सदा परमार्थ सिखाता है। फिर, अगर लड़कोंके उस मार्गपर आरूढ होनेका प्रसंग आये तब तो मुझे लगता है, उन्हें उसपर जाने ही देना चाहिए। अगर यह बात गले उतर सके तो मेरी विनती है कि आप चि॰ नारणदासको इजाजत दे दें।

इस सम्बन्धमें सबसे पहले ध्यान इस बातका रखना है कि उसकी अपनी वृत्ति वैसी होनी चाहिए। उसका विचार हो तभी मेरी यह विनती लागू होती है। मुझे याद नहीं है कि नारणदासका व्याह हो गया है या नहीं। अगर न हुआ हो, और सगाई भी न हुई हो, तो मेरे खयालसे वह ज्यादा अच्छा काम कर सकेगा। मैंने इस विषयमें बहुत विचार किया है। वैसा आचरणभी किया है, और कर रहा हूँ। [इस समय] इसमें गहरे नहीं उतरता। सिर्फ] अपने विचार आपके सामने रखता हूँ, क्योंकि मुझे लगता है और मैं यह मान लेता हूँ कि हम सब भाइयोंमें आप ही मुझे कुछ-कुछ समझते होंगे।

विशेष चि॰ छगनलाल आपसे कहेगा। उसकी बात सुनकर जैसा ठीक लगे वैसा करें।

मोहनदासके दण्डवत

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८९९) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी।