२९२. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको
[ लन्दन ]
अक्तूबर ५, १९०९
मैं आपके इसी ४ तारीखके पत्रके लिए धन्यवाद देता हूँ [१] आप जो थोड़ा-सा अवकाश ले सके हैं, आशा है वह सानन्द बीता होगा। मैंने जान-बूझकर इस विषयमें और जानकारी देकर आपको परेशान नहीं किया। लेकिन अब मैं कह दूं कि श्री पोलक भारतमें बहुत काम कर रहे हैं। बम्बईमें जो सार्वजनिक सभा की गई थी वह बहुत सफल रही। उसके बाद सूरत, अहमदाबाद और कठूरमें सभाएँ की गई हैं। भारतके अखबारोंमें इस सवालपर पहलेसे ज्यादा विस्तारपूर्वक और निश्चय ही बहुत ज्यादा समझदारीसे चर्चा की जा रही है। अब अखबार यह मानते हैं कि ट्रान्सवालके भारतीय किसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्यसे कष्ट नहीं उठा रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय अपमानको दूर करानेके लिए कष्ट उठा रहे हैं। वे अबतक इस बातको स्वीकार नहीं करते थे।
आपने लॉर्ड मॉर्लेके पत्रके सम्बन्धमें जो सलाह दी है और लॉर्ड सभाके सूचना-पत्रमें अपने प्रश्नके[२] सम्बन्धमें जो खबर दी है उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ।
मुझे अभी-अभी लॉर्ड क्रू का उत्तर मिला है।[३] उनके पत्रकी नकल और उत्तरका मसविदा इसके साथ भेजता हूँ। मसविदा आपकी मंजूरी या आपके संशोधनके लिए है। कल 'टाइम्स' ने अपने जोहानिसबर्ग के संवाददाताकी भेजी हुई जो खबर छापी थी, उत्तर बहुत-कुछ वैसा ही है। श्री स्मट्सने 'रैंड पायोनियर्स' भाषण दिया था। संवाददाताने उनके भाषणका सारांश देते हुए लिखा है:
मेरी रायमें लॉर्ड क्रू का उत्तर सन्तोषजनक भी है और बहुत असन्तोषजनक भी—असन्तोषजनक इसलिए कि लॉर्ड क्रू स्पष्टतः श्री स्मट्ससे जरूरतसे ज्यादा डरते हैं; सन्तोषजनक इसलिए कि बातचीत...[४]
- ↑ गांधीजीने लॉर्ड ऍम्टहिलको २१ और २२ सितम्बरको पत्र लिखे थे, लेकिन ये उपलब्ध नहीं हैं। परन्तु लॉर्ड ऍम्टहिलके उत्तरसे थोड़ा-बहुत मालूम हो जाता है कि गांधीजीने इन पत्रोंमें क्या लिखा था। देखिए परिशिष्ट २८।
- ↑ इस प्रश्नका उत्तर लॉर्ड क्रू ने १६ नवम्बरको लॉर्ड सभाके शीतकालीन अधिवेशनमें दिया था।
- ↑ इसपर ४ अक्तूबरकी तारीख थी; देखिए संलग्न-पत्र, पृष्ठ ४५५।
- ↑ यहाँ एक पंक्ति मिट गई है।