पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५५
पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको


ऐसा लगता है कि श्री हाजी हबीबको और मुझे सार्वजनिक रूपसे कुछ काम करनेके बाद ही यहाँसे जाना चाहिए। सामान्यतः देखनेसे तो यही आवश्यक मालूम होता है। अगर हो सके तो हमें लोकसभाके उन सदस्योंकी, जो हमारी बात सुनना चाहें, एक बैठक बुलानी चाहिए। हमें सभी दलोंसे सहायता और सहयोगकी माँग करनी चाहिए। हमें विविध धार्मिक सम्प्रदायोंके प्रतिनिधियोंके सामने भी स्थिति रखनी चाहिए। आपने जो छोटा विवरण पसन्द किया है उसे भी वितरित करना चाहिए और उसके साथ एक ऐसा परिचयात्मक पत्र भेजना चाहिए, जिसमें अबतककी सब स्थिति दी जाये। हमें उन सम्पादकोंसे भी मिलना चाहिए जो हमसे मिलना मंजूर करें और अखबारोंको एक आम पत्र भेजना चाहिए। [१] इसके लिए शायद हमें कमसे-कम इस महीनेके आखिरतक ठहरना पड़ेगा। मैं यह भी फिरसे सोच रहा हूँ कि अगर हमें जोहानिसबर्गकी यूरोपीय और भारतीय समितियाँ मंजूरी दे दें तो क्या हमारा थोड़े-से समयके लिए भारत जाना और फिर लन्दनसे होते हुए दक्षिण आफ्रिका लौटना ज्यादा अच्छा न होगा? लेकिन मेरे खयालसे हमें पहला कदम यह उठाना चाहिए कि हम लॉर्ड क्रू को एक पत्र लिखें। इस पत्रको मैं आपके पाससे मसविदा वापस मिलते ही भेज दूँगा। बाकी बातोंके बारेमें, अगर आपको फुरसत हो और आप शहर जा रहे हों तो आप जब चाहें, हम बातचीत कर सकते हैं [२] अगर यह न हो सके तो मेरे लिए आपकी सलाह ही मूल्यवान होगी।

आपका, आदि,

[संलग्न-पत्र]
पत्रका मसविदा

उपनिवेश-उपमन्त्री


कलोनियल ऑफिस, एस॰ डब्ल्यू॰


महोदय,

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नके सम्बन्धमें आपका इसी ४ तारीखका पत्र पानेका सौभाग्य मिला। लॉर्ड क्रू ने सन्तोषजनक समझौता करानेके उद्देश्यसे जो प्रयत्न किये हैं और वे आगे जो करेंगे उनके लिए श्री हाजी हबीब और मैं उनके आभारी हैं। लेकिन मेरे साथी और मैं यह अनुभव करते हैं कि अब वक्त आ गया है, जब हमें अपनी रवानगीसे पहले जनताको अपनी सब बात बता देनी चाहिए; और अब हम यहाँ ज्यादा देर रुकना भी नहीं चाहते। मेरा खयाल है कि बातचीत जहाँतक चली है वहाँतक उसका विशुद्ध परिणाम सार्वजनिक रूपसे प्रकट करनेमें लॉर्ड क्रू को कोई आपत्ति न होगी।[३]

आपका, आदि,

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१११-२) से।

  1. यह नवम्बर ५, १९०९ को प्रकाशनार्थ भेजा गया।
  2. गांधीजी लॉर्ड ऍम्टहिलते दूसरे दिन दोपहरको मिले थे।
  3. गांधीजीने इसका दूसरा मसविदा तैयार किया था; "पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलफो", पृष्ठ ४५९। लेकिन अन्त में जो पत्र भेजा गया वह भिन्न था; देखिए "पत्र : उपनिवेश-उपमन्त्रीको", पृष्ठ ४६७-६८।