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भाषण: गुजरातियोंकी सभामें


यदि ऊपरकी दलील ठीक है, तो हम आगे खास गुजराती भाषाके बारेमें विचार कर सकते हैं। गुजराती आपसमें अंग्रेजी भाषाका व्यवहार करते हैं। इसपर कहना पड़ेगा कि यह उनकी अधम दशाका सूचक है। इसके कारण मातृभाषा कंगाल हो गई है। हम स्वयं उसका अपमान करते हैं और फलतः स्वयं दीन बनते जाते हैं। मैं यह सोचकर काँप उठता हूँ कि मैं अपने विचार गुजरातीमें ठीक-ठीक व्यक्त नहीं कर सकता और अंग्रेजीमें कर सकता हूँ। जिस व्यक्तिने अपनी भाषाका अनादर किया है, वह अपने देशका क्या भला करेगा? महान् गुजराती समाज कभी गुजरातीको भूलकर अन्य भाषा अंगीकार करेगा, यह स्वप्नमें भी सम्भव नहीं। यदि यह सम्भव नहीं है, तो यह कहनेमें कोई अतिशयोक्ति न होगी कि जो अपनी भाषाकी उपेक्षा करते हैं, वे अपने देश और समाजके द्रोही हैं। यह वचन अनुचित नहीं है कि भाषामें उसे बोलनेवालोंका प्रतिविम्ब होता है। यदि ऐसा है, तो यह एक बड़ा अच्छा लक्षण है कि गुजराती, बंगला, उर्दू, मराठी आदिके सम्मेलन होने लगे हैं।

विदेश जानेवाले भारतीयोंके लिए यह बात बहुत विचार करने योग्य है। उनकी जिम्मेदारी बड़ी है। उन्हें अपनी जातिका नेतृत्व करना है। यदि वे ही अपनी भाषा भूल जायेंगे, तो पापके भागी होंगे।

मैंने अंग्रेजीकी काफी शिक्षा पाये हुए कुछ लोगोंके लेखोंमें पढ़ा है, और कुछको ऐसा कहते भी सुना है कि वे गुजरातीकी अपेक्षा अंग्रेजी अधिक जानते हैं। यह हमारे लिए बहुत शर्मकी बात है। सच कहा जाये तो यह ठीक भी नहीं है। मुझे यह कहनेमें कोई झिझक नहीं कि ऐसा लिखने और बोलनेवाले अंग्रेजी भाषा शुद्ध नहीं लिखते-बोलते। ऐसा ही होना भी चाहिए। मैं मानता हूँ कि कुछ विचार अंग्रेजी भाषामें आसानीसे प्रकट किये जा सकते हैं; यद्यपि यह भी हमारे लिए शर्मकी बात है। लेकिन, साधारणतः यह कहना कठिन है कि हम अंग्रेजी भाषाके मुहावरे और व्याकरणसे अच्छी तरह परिचित हैं। [इसके विपरीत,] गुजराती भाषाके मुहावरे और व्याकरणसे साधारणतः सभी भारतीय सहज परिचित होते हैं। हम गुजरातीमें भूतकालके बदले वर्तमान कालका प्रयोग कभी नहीं करते; किन्तु बहुत अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयोंके लेखोंमें भी कालका अशुद्ध प्रयोग मिलेगा। मुहावरोंकी अशुद्धियोंका तो पार नहीं है। ऐसा होता है कि [कभी-कभी] हम गुजराती उच्चारण ठीक नहीं करते और संयुक्ताक्षर नहीं बोल पाते। लेकिन, यह एक ऐसा दोष है, जिसे आसानीसे दूर किया जा सकता है। इसीके कारण यह नहीं कह सकते कि हम गुजराती कम जानते हैं।

कई बार यह भी सुना जाता है कि जो विद्यार्थी अंग्रेजी पढ़नेके लिए [यहाँ] आते हैं उन्हें अंग्रेजीका अभ्यास करना होता है; इस स्थितिमें वे गुजरातीकी चिन्ता क्यों करें? यह वहम है। जब गुजराती मिले-जुलें तब यदि वे गुजरातीमें ही बोलें, तो उनका अंग्रेजीका ज्ञान कम नहीं होगा, उसका बढ़ना ही सम्भव है; क्योंकि तब वे अंग्रेजोंकी ही अंग्रेजी सुनते रहेंगे, जिससे उनके कान तेज होंगे और वे गलत अंग्रेजी फौरन पकड़ सकेंगे। इसके सिवा, विलायतमें रहनेवाले भारतीय विद्यार्थी अपनी पढ़ाई-लिखाईमें कुछ इतने व्यस्त नहीं रहते कि वे थोड़े समय भी गुजराती पुस्तकें न पढ़ सकें। अन्तमें यदि उन्हें देशकी सेवा करनी है, सार्वजनिक काम करना है, तो अपनी मातृभाषाके लिए उन्हें समय निकालना ही पड़ेगा। यदि अपनी भाषाकी हानि करके अंग्रेजी सीखनेमें ही अपना समय देना है, तो अंग्रेजी पढ़नेका जो