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पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको


विलायतमें रहनेवाले भारतीयोंसे मैं यह कहता हूँ कि विलायतमें आकर उन्हें अपने बाप-दादोंकी भाषा न भूलनी चाहिए, बल्कि अंग्रेजोंसे सबक लेकर उन्हें उस भाषासे अधिक प्रेम करना चाहिए। यदि वे परस्पर लिखने या बोलनेमें अपनी मातृभाषाका ही उपयोग करेंगे, तो भाषाका उद्धार शीघ्र होगा। इससे भारतकी उन्नति होगी और वे अपने कर्तव्य पूरे कर सकेंगे। जरा विचारपूर्वक देखनेपर यह काम आसान मालूम होगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-११-१९०९

२९४. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अक्तूबर ६, १९०९

लॉर्ड महोदय,

इस पत्र के साथ मैं सर फ्रांसिस हॉपवुडको लिखे पत्रका मसविदा भेज रहा हूँ। चूँकि इस प्रकारके मजमूनका पत्र भेजने में कोई नुकसान नहीं हो सकता, इसलिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वह पत्र भेजा जाता है या कल जो मसविदा[१] भेजा गया है, उसके अनुसार लिखा पत्र भेजा जाता है। इस मामलेमें जितना सोचता हूँ उतना ही मुझे लगता है कि हमें इस वक्त इससे ज्यादा सन्तोष न मिलेगा। मुझे यह भी लगता है कि स्थितिको जान-बूझकर अस्पष्ट रखा गया है और इसके पीछे कूटनीति है। इसलिए इसके स्पष्ट किये जानेकी गुंजाइश नहीं रहती। गूढ़ राजनीति और कूटनीतिका अनुभव मुझे बिल्कुल नहीं है, इसलिए मुझे तो वही मसविदा ज्यादा ठीक लगता है जो मैंने कलके पत्रके साथ आपको भेजा था। लेकिन हमें यहाँ जो आन्दोलन करना है उसकी मोटी रूपरेखा उसमें जोड़ दी जाये और अपना भारत जानेका इरादा भी बता दिया जाये। परन्तु इस बारेमें मैं बिल्कुल आपपर निर्भर हूँ और आप जो भी सलाह देनेकी कृपा करेंगे, वही करूँगा।[२]

आपका, आदि,

  1. देखिए "पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको", पृष्ठ ४५५।
  2. लॉर्ड ऍम्टहिलने ७ अक्तूबरको गांधीजीके ५ और ६ अक्तूबरके पत्रोंकी प्राप्ति सूचित करते हुए लिखा था: "...देखता हूँ आगे विचार करनेपर आपकी इच्छा विस्तृत प्रक्रियाको अपनानेकी नहीं है, जो मैंने तब सुझाई थी। मुझे कहना चाहिए कि आप सहज मनसे जो सोचते हैं वह बिल्कुल ठीक है; और ऐसा माननेका पर्याप्त कारण मौजूद है कि अगर इस समय लॉर्ड क्रू चाहे भी तो आपके मामलेकी ओर पूरा ध्यान नहीं दे सकेंगे। ऐसी हालत में आपके निर्णय में हस्तक्षेप करना अच्छा नहीं लगता। मैं इस बातसे सहमत हूँ कि अगर आप वैसा ही लिखें जैसा पहले लिखना चाहते थे तो वह गलत न होगा। हाँ, आप जिन तरीकोंसे जनतासे अपनी बातें कहना चाहते हैं, उनको स्पष्ट करनेके लिए कुछ पंक्तियाँ जोड़ दें।"