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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पात्रता बढ़ेगी तथा उन्हें लड़कर लेनेकी उनमें ज्यादा सामर्थ्य होगी? अगर नेतागण हमारे उद्देश्यों या सभाओंकी उपयोगितामें आस्था रखे बिना वहाँ सभाएँ करते हैं तो निश्चित है कि वे बुरी तरह असफल होंगी। हो सकता है कि सभाएँ ऊपरसे उत्साहपूर्ण दिखाई देती हों, लेकिन वह अन्तर्धारा, जिसे स्वयं नेताओंने लक्षित किया होगा, सरकारकी नजरोंसे भी छिपी नहीं रहेगी। क्या आप उन्हें यह नहीं समझा सकते कि यद्यपि भारतमें हमें वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है, फिर भी इसका मतलब यह नहीं कि अगर ट्रान्सवालके भारतीय योग्य होनेपर भी अपनी स्थिति सुदृढ़ नहीं कर सकते और भारतमें रहनेवाले भारतीयोंसे उन्हें वह सहायता प्राप्त नहीं हो सकती जिसका उन्हें हक है? क्या वे यह नहीं देख सकते कि ट्रान्सवालमें चलनेवाले प्रयत्नों और तदनुरूप भारतमें किये जानेवाले प्रयासोंका स्वरूप ही ऐसा है कि वे भारतको उसके लक्ष्यके अधिकाधिक निकट ले जायेंगे, और सो भी बड़े शुद्ध तरीकेसे? क्या हम शिष्टताकी का उल्लंघन किये बिना उन्हें यह नहीं दिखा सकते कि भारतमें किसी भी संघर्षको वैसा आदर्शरूप नहीं दिया गया है, जैसाकि ट्रान्सवालके संघर्षको दिया गया है? कांग्रेस जितने भी सुधारोंकी माँग कर रही है, सबका उद्देश्य कोई-न-कोई ठोस और भौतिक लाभ प्राप्त करना है। उसके किसी भी सुधारका उद्देश्य विशुद्ध रूपसे उस प्रकारके लाभकी प्राप्ति नहीं है जिससे, किन्हीं दृश्य लक्षणोंके बिना, मात्र राष्ट्रीय पौरुषकी अभिवृद्धि होती है। तब अगर ट्रान्सवालके मुट्ठी-भर भारतीय भारतके सम्मानकी खातिर अपने-आपको उत्सर्ग कर देनेके लिए कृतसंकल्प हैं तो भारत अपनेको अवसरके योग्य सिद्ध करके इन बातोंको अपने कार्यक्रममें प्रमुख स्थान क्यों नहीं देगा? भारतके नेता इस प्रश्नको भारतमें या उपनिवेशोंमें निर्भीकतापूर्वक लोगोंके सामने ला सकते हैं और उन्हें लाना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि ये उपनिवेश हर तरहके दण्डभयसे मुक्त होकर भारतका अपमान भी करते जायें और ब्रिटिश झण्डेके हकदार होनेका झूठा दावा भी करते रहें। हम जानते हैं कि हम बहुत ही सीमित ढंगकी सैद्धान्तिक समानताके लिए लड़ रहे हैं, और उससे तत्काल कोई लाभ भी होनेका नहीं है। लेकिन इसी कारणसे, मेरे और आपके लिए, यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि हम अपना पूरी शक्ति लगा दें। क्या वहाँके नेता यह सब नहीं समझ सकते? क्या वे नहीं देख सकते कि इस लड़ाईके द्वारा हम मातृभूमि भारतके सेवार्थ भविष्यके लिए एक अनुशासित सेना तैयार कर रहे हैं? यह सेना ऐसी होगी जो बड़ीसे-बड़ी वहशी ताकत से सामना होनेपर भी अपना जौहर दिखा सकेगी। अब वहाँके नेता ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षकी मार्फत हमें लिख भेजें कि हम संघर्ष जारी रखें और उनका आशीर्वाद हमारे साथ है।

शुक्रवारको मैं इमर्सन क्लबमें "अनाक्रामक प्रतिरोधकी नैतिकता" पर बोल रहा हूँ,[१] और बुधवार तारीख १३ को हैम्पस्टेडकी शान्ति और पंच-फैसला समिति (पीस ऐंड आर्बिट्रेशन सोसायटी) में "पूर्व और पश्चिम" पर।[२]

आपको नागप्पनकी तसवीर मिल गई होगी। मेरी इच्छा है, आप वहाँके अखबारोंमें उसे प्रकाशित करवा दें। इसके लिए आप 'इंडियन रिव्यू' और मद्रासके अन्य अखबारोंको लिखें तो अच्छा हो। मेरा खयाल है, मैं आपको यह बता चुका हूँ कि मैंने अपने जोहानिस-

  1. देखिए "भाषण: इमर्सन क्लबमें", पृष्ठ ४७०।
  2. देखिए "भाषण: हैम्पस्टेडमें", पृष्ठ ४७४-७६।