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पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको

वर्गवासी बन्धुओंको नागप्पनके नामपर एक छात्रवृत्ति प्रारम्भ करनेकी सलाह दी है। अगर बम्बई या मद्रासमें ऐसा करनेवाला कोई आदमी मिल जाये तो बड़ी शानदार बात हो। उन्हें इस बातका एहसास होना चाहिए कि २० वर्षके एक सच्चरित्र युवकने देशके लिए अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये।

श्री डोककी पुस्तक शायद अगले हफ्ते मुझे मिल जायेगी। श्री कूपरने[१] तो कुछ प्रतियाँ शनिवारको ही देने को कहा है।

शुक्रवारको श्री अली इमामके सम्मानमें समारोह किया गया। लोगोंने पहलेसे बिल्कुल सोच नहीं रखा था, लेकिन "टोस्ट" की विधिके सिलसिलेमें दक्षिण आफ्रिकी शिष्टमण्डलोंके प्रति भी शुभकामनाएँ व्यक्त की गई। समारोहकी अध्यक्षता सर मंचरजी कर रहे थे, और वे बहुत अच्छा बोले। इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे संघर्षके महत्त्वको पूरी तरह समझते हैं। "टोस्ट" का जवाब[२] देते हुए मैंने श्री अली इमामको इस बातके लिए जरा आड़े हाथों लिया कि उन्होंने अपने भाषणमें दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नका कोई उल्लेख नहीं किया। मैंने कौंसिलके भारतीय सदस्योंसे अपील की कि वे शिकायतें दूर करनेकी माँग करें और अगर भारतीय कौंसिल तब भी कुछ नहीं करती तो अपने पद त्याग दें। कौंसिलके मुसलमान सदस्य समारोहमें उपस्थित थे। इसपर श्री अली इमामने उठकर यह बताया कि उन्होंने दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नका जिक्र क्यों नहीं किया था, और कहा कि प्रश्न इतना बड़ा था कि उसपर अनेक अन्य विषयोंके साथ-साथ विचार नहीं किया जा सकता था; लेकिन वह उनके हृदयमें पैठा हुआ है और वे उसके लिए भारतमें जो कुछ बन पड़ेगा, करेंगे। कल उनको एक प्रीति-भोज दिया गया था। मैं उसमें नहीं जा सका, क्योंकि मुझे गुजराती साहित्य प्रोत्साहन समितिकी एक बैठकमें शामिल होना था। लेकिन, उन्होंने मॉडसे कहा है कि अगर आप कलकत्तेके आसपास कहीं होंगे तो वे आपको अपने यहाँ निमन्त्रित करेंगे। आपको यह बता दूँ कि श्री अली इमाम बड़े स्नेही आदमी हैं और आप जब-कभी उधर जायें और वे आमन्त्रित करें तो आप उनके साथ अवश्य ठहरें। आप उनकी टोह रखिए। वे इसी महीने भारतके लिए प्रस्थान करेंगे।

श्री कैकुबाद कावसजी दिनशा और श्रीमती दिनशा शनिवारको रवाना हो गये। जिस जहाजसे यह पत्र जायेगा, उसीसे वे बम्बई पहुँच रहे हैं। श्री पेटिट उन्हें जानते हैं। आप जंजीबारमें उनके परिवारके लोगोंसे मिल सकते हैं। श्रीमती दिनशाने मुझे 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादकके नाम गुजरातीमें एक पत्र[३] दिया है। उसमें उन्होंने हमारे प्रति सहानुभूति व्यक्त की है और जो महिलाएँ कष्ट उठा रही हैं उन्हें प्रोत्साहन दिया है। याद नहीं, मैंने आपको यह बताया या नहीं कि अबतक रैमजे मैकडॉनाल्ड[४] भी वहाँ पहुँच गये होंगे। कुमारी विंटर-बॉटम उन्हें बड़ा ईमानदार व्यक्ति बताती हैं और उनकी बहुत प्रशंसा करती हैं। वे किसी नैतिकता समितिके सदस्य भी थे। मैं चाहूँगा कि आप उनसे अवश्य मिलें।

  1. इंडियन क्रॉनिकलके सम्पादक नसरवानजी एम॰ कूपरने ढोक द्वारा लिखी गांधीजीकी जीवनी प्रकाशित की थी।
  2. देखिए "लन्दन", पृष्ठ ४५९।
  3. यह २३-१०-१९०९ के अंक में प्रकाशित किया गया था।
  4. (१८६६-१९३७); मजदूर-दल (लेबर पार्टी) के एक प्रमुख सदस्य, और १९२४ तथा १९२९-३५ में इंग्लैंडके प्रधान मन्त्री।