२९६. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१४]
[ अक्तूबर ८, १९०९ से पूर्व ]
मैं हफ्ते-दर-हफ्ते अनिश्चित खबर देता जाता हूँ। आशा है कि इससे कोई भारतीय निराश न होगा।
यह कहावत याद रखनी चाहिए कि अपने बलके बराबर कोई बल नहीं होता। इतना तो मुझे निश्चित जान पड़ता है कि जो विलम्ब हो रहा है, उसके कारण हम ही हैं। किसीको यह तो मानना ही नहीं चाहिए कि हममें जो निर्बलता है, उसको सरकार नहीं जान सकती। सबलता है, उसको तो हम देखते हैं; किन्तु ऐसा आभास मिलता रहता है कि हम अपनी निर्बलताको छुपाना चाहते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। अब हम जेलके तो अभ्यस्त हो ही गये हैं।
खबर आई है कि श्री नानालाल शाहको फिर सीमाके बाहर भेज दिया गया और फिर तुरन्त गिरफ्तार भी कर लिया गया। मुझे इस खबरको पढ़कर बहुत खुशी हुई है। मैं उनको मुबारकबाद देता हूँ। हमें यह सीख लेना है कि जेलसे बाहर रहकर कोई भी सुख भोगनेसे जेलमें रहकर मर जाना ज्यादा अच्छा है।
नैतिकता-संघ (यूनियन ऑफ़ एथिकल सोसाइटीज़) ने मुझे इमर्सन क्लबमें भाषण देनेके लिए आमन्त्रित किया है।[१] यह भाषण राजनीतिक नहीं है। इसका विषय सिर्फ यह है कि सत्याग्रह क्या है। किन्तु उसमें लड़ाईकी बात आ जायेगी। इसी प्रकारका एक और भाषण देनेकी भी बात चल रही है।[२]
श्री मायरसे जोहानिसबर्गमें ही मेरी जान-पहचान हुई थी। उसी आधारपर मैं उनसे मिला हूँ। यदि लॉर्ड क्रू से प्रतिकूल जवाब मिले तो उन्होंने भी सहायता करनेका वचन दिया है। डॉ॰ क्लीफर्ड ने भी ऐसा ही वचन दिया है। वे श्री डोकके परिचित हैं और यहाँके एक प्रख्यात पादरी हैं।
इंडियन ओपिनियन, ३०-१०-१९०९