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३०१. भाषण: इमर्सन क्लबमें[१]

[लन्दन
अक्तूबर ८, १९०९]

युद्धको शरीर-बलका गुणगान करके गौरवान्वित किया जाता है, लेकिन वह मूलतः मनुष्यका पतन करनेवाला है। वह उनका नैतिक बल तोड़ देता है, जिन्हें उसकी शिक्षा दी जाती है। वह स्वभावतः सौम्य प्रकृतिके लोगोंको क्रूर बना देता है। वह नैतिकताके हर सुन्दर सिद्धान्तका उल्लंघन करता है। उसमें प्रतिष्ठा प्राप्त करनेका मार्ग वासनाके आवेगोंसे दूषित और हत्याओंके रक्तसे रंजित है। हमारे लक्ष्य तक पहुँचनेका मार्ग यह है। हमारा लक्ष्य तो सबल, पवित्र और सुन्दर चरित्रका विकास करना है और उसे सिद्ध करनेमें उत्तम सहायता मिलती है—कष्ट सहनसे। आत्म-संयम, स्वार्थहीनता, धैर्य और नम्रताके फूल उनके चरणोंके नीचे खिलते हैं जो स्वयं कष्ट सहन करते हैं परन्तु दूसरोंको कष्ट देनेसे इनकार करते हैं, और जोहानिसबर्ग, प्रिटोरिया, हाइडेलबर्ग तथा फोक्सरस्टके भयावने कारागार इस दिव्य नंदनवनके चार सिंह द्वार हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-२-१९१०

३०२. शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१५]

[अक्तूबर ८, १९०९ के बाद]

इस बार मैं ज्यादा खबर दे सकता हूँ; किन्तु मुझे भय है कि इससे बहुत सन्तोष नहीं होगा। लॉर्ड क्रू लिखते हैं कि "फिलहाल" वे ज्यादा जानकारी नहीं दे सकते। जनरल स्मट्स अपने दूसरे मन्त्रियोंके सामने बात रखेंगे। उसके बाद जानकारी मिलेगी। जनरल स्मट्स मन्त्रियोंके सामने क्या बात रखेंगे, यह मालूम नहीं। अगर वे बात लॉर्ड क्रू के तारके अनुसार रखेंगे, तो वह हमारी ही माँग होगी। यदि वे अपने मनमें निश्चित की हुई बात रखेंगे तो वह होगी कानून रद करनेकी बात, और रियायतके तौरपर एक निश्चित संख्या में पढ़े-लिखे लोगोंको स्थायी रूपसे आने देनेकी बात। यदि वे इस बातको रखना चाहते हैं तो कहा जा सकता है कि यह बेकार है। यदि वे हमारी माँगें रखते हैं तो ठीक हैं। किन्तु [लॉर्ड क्रू के] इस पत्रका जो भीतरी मतलब है वह प्रत्येक भारतीयके समझने योग्य है। उस पत्रका मतलब यह है

  1. यह "अनाक्रामक प्रतिरोधका नीति-पक्ष" पर दिये गये गांधीजीके भाषणका एक अंश है। इसे नवम्बर, १९०९ के इंडियन रिव्यूने प्रकाशित किया था और उससे इंडियन ओपिनियनने उद्धृत किया था। कलकत्तेकी अमृत बाजार पत्रिका में उसके लन्दन-स्थित संवाददाताकी भेजी यह खबर छपी थी कि सभा रिफॉर्म क्लबमें की गई, ताकि ज्यादा लोगोंके बैठनेकी व्यवस्था हो सके।