पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७१
शिष्टमण्डलकी यात्रा [–१५]

कि जनरल स्मट्स ऐसा करके समय प्राप्त करना चाहते हैं, और समय मिल जानेपर वे इस बीच सत्याग्रहियोंका उत्साह तोड़ देना चाहते हैं। यदि उनका उत्साह न टूटा तो फिर हम जो-कुछ माँगते हैं, वे दे देंगे। यह भेद समझकर सत्याग्रहियोंको पूरा बल लगा देना चाहिए। उन्हें न चुप बैठना है और न दुर्बलता दिखानी है।

[लॉर्ड क्रू के] उपर्युक्त जवाबसे स्पष्ट है कि [हमारे कष्ट दूर करनेका] सच्चा उपाय इंग्लैंडमें नहीं, बल्कि हमारे अपने हाथोंमें है। वह उपाय है केवल हमारा आत्मबल। इसका परिचय हमने अभी पूरी तरहसे दिया नहीं है, इसलिए हम जो कुछ माँगते हैं, वह मिल नहीं पाया है।

लोग जेल गये हैं, इतना ही काफी नहीं है। मैं बहुत बार कह चुका हूँ कि हमारा मन मैला न होना चाहिए। हमें अपने कष्ट-सहनकी हद नहीं बाँध लेनी चाहिए। जो दुःख आयें, उन्हें सहनेके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। उन्हें न सहेंगे तो हम हार जायेंगे। हमें एक बार या दस बार भी जेल जाना काफी न समझना चाहिए। जबतक हमारी माँगें पूरी न हों तबतक हमें जेलका दुःख ही नहीं, मौतका दुःख भी खुशी-खुशी सहनेको तैयार रहना चाहिए। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि सारे सत्याग्रही अपने निश्चयपर पूरी तरह दृढ़ रहेंगे और जेलोंको भर देंगे। सब भारतीयोंको याद रखना चाहिए कि ट्रान्सवालकी गाथा सारे भारतमें गाई जा रही है। श्री पोलककी आवाज भारतमें गूंज रही है। अखबार हमारी चर्चासे भरे हुए हैं। आशा है, इस सबको ध्यान में रखकर भारतीय कतई पैर पीछे न हटायेंगे और कमजोर नहीं पड़ेंगे। इंग्लैंडमें भी यही चर्चा है कि ट्रान्सवालके भारतीयोंने हद कर दी है और वे पीछे न हटेंगे। यह याद रखना चाहिए कि ट्रान्सवाल पूरे दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाई लड़ रहा है।

लॉर्ड क्रू के उपर्युक्त पत्रसे प्रकट होता है कि शिष्टमण्डलका केवल खानगी तरीकेसे काम करना अब काफी नहीं है। अब उसके बाहर निकलनेकी जरूरत है। इसलिए लॉर्ड से मामलेको प्रकट करने की मंजूरी मँगाई है।[१] उनकी मंजूरी मिलनेपर लोगोंके सम्मुख सारा मामला रख दिया जायेगा। फिर, यदि हाउस ऑफ कॉमन्सके सदस्य हमारी बात सुनेंगे तो हम उनके सामने सब तथ्य रखेंगे। अखबारोंमें यथासम्भव चर्चा की जायेगी, और सभाएँ करना सम्भव हुआ तो वे भी की जायेंगी।

एक बड़ा सवाल यह उठा है कि थोड़े समयके लिए ही सही, हम दोनोंको भारतका एक चक्कर लगाना चाहिए या नहीं। इस सम्बन्धमें हमारे हितैषियोंका मत यह है कि जाना तो उचित है। कुछ कारणोंसे ऐसा प्रतीत होता भी है कि यदि जा सकें तो ठीक हो।

मेरा अपना विचार तो यही है कि हमारा मुख्य काम ट्रान्सवालमें है और ट्रान्सवालमें भी वहाँकी जेलोंमें है। केवल एक ही विचार आड़े आता है। इस बार हम यहाँ आये हैं तो अपनी दुर्बलता बताने के लिए ही। हम यह खयाल लेकर आये हैं कि शायद समझौता जल्दी हो जाये। जिस दृष्टिसे हम यहाँ आये हैं, उसी दृष्टिसे हमारा भारत जाना भी ठीक है। लेकिन, तब बहुत-सी दूसरी बातें भी हैं। इससे हमारे आफ्रिका लौटनेमें देर लगती है। जैसा हमने ऊपर बताया, यह काम करनेमें कुछ वक्त लगेगा। हम ३० अक्तूबरके बाद ही भारत जा सकेंगे। वहाँ लगभग एक महीना लगेगा, और एक महीना यात्रामें भी लग

  1. देखिए "पत्र: उपनिवेश-उपमन्त्रीको", पृष्ठ ४६७-६८।